________________ गुण PP.AC.Gunratnasus M.S. नगरी प्रत्ये मोकल्या अने ते माणसो पण ते नगरी प्रत्ये आवी पहोच्या. // 286 // त्यां द्वारपाले जाहेर करेला तेओ धनराजनी सन्नामां आव्या अने राजानी आगल भेट मूकीने तेना उपर वस्त्रनो डावडो मूक्यो.॥२८७॥ जेम भमरी पुष्पने सुंघे तैम राजा धनराजे पण सभाना मध्यजागने सुवासित करनारा अने डाबडामा रहेलां वस्त्रने जोइने सुंघ्यु. // 288 // आपणुं कार्य सिद्ध थयुं एम जाणी प्रसन्न थयेला ते माणसो राजानी रजा लइ फक्त सभामांथीज नहि, परंतु नगरथी पण चाली निकल्या. // 289 // पछी वे प्रहर गया एटले धनराज राजा तेवेत्रिवेदिता प्राप्ताः, धनराजस्य संसदि॥ विमच्य प्रानतं तस्योपरि वासपुटं निर्धः॥२॥ वासयंतं सन्नामध्यं, वासं वीदय पुटस्थितम् // जे'घीयतेस्म नूपालो, मरःकुसुमं यथा // सिंह कार्यमिति प्रीता, अनुज्ञाप्य नरेश्वरम् // न केवलं सन्नायास्ते', निर्गता नगरोदपि // अथ यामदये जाते, धनराजो महीपतिः॥ विषेर्ण व्याकुलो जातः, पंपात पृथिवीतले॥श्ए॥ 'विषं विर्षमिति व्यग्रा, वदंतः सचिर्वादयः॥ कारयंतः प्रकारांश्च,नपं चक्रुःसंचतनम्॥॥ नृपतिः शोधयामास, तान्नरान् गरेऽखिले ॥अदृष्टास्तदा मेने,तान विर्षदायकान्॥श्ए॥ विषव्यापे गते तस्मिन् , संजीतते च पार्थिवे॥ सर्वत्र नगरे तंत्र,प्रोवर्त्तत महोत्सवाः॥श्ए३॥ इतश्च ज्यसिंहाख्यः, ऍरिस्तत्रं समागतः // चतनिधरस्तं च वंदितुं पतिर्ययो" श्ए नत्वा च सपरिवारः, श्रुत्वा धर्मोपदेशनाम् // पंप्रच्छ कर्मणा केन, प्राज्यं रोज्यमिदं मम॥ * विषथी व्याकुल थइने पृथ्वी उपर पडयो. // 290 // "विष विष" एम कहेता व्यग्र वनेला प्रधानोए उपचारो करता छता राजाने सचेत करचो. // 291 // राजाए ते माणसोने सघला नगरमां शोध्या, परंतु ते वखते तेओ ने न जोइने तेओनेज विष आपनारा मान्या. // 292 // ते विपनो प्रचार नाश पाम्यो अने राजा सज्ज थयो / एटले त्यां नगरमां सघले ठेकाणे महोत्सवो थया. // 293 // एवामां चार ज्ञानना धारणहार जयसिंह मूरि यां आव्या अने राजा तेमने वंदन करवा गयो. // 294 // परिवार सहित राजाए मुनिने नमस्कार करो अने ध- Jun Gun Aaradhak Trust XXXXXXXXXXXXXXXXXXX 35 //