________________ मोपदेश सभिलीने पूछयु के, "हे भगवन्! मने कया कर्मथी आ विस्तारवंत राज्य प्राप्त थयु. // 295 ॥मुनिए | पूर्वभव कह्यो के, "हस्तिनापुर नगरमां धनदत्त शेठने चित्तनंदन नामनो पुत्र थयो हतो. // 296 // प्राप्त थये ला हर्षना उत्कर्षवाला तें शुभ भावथी जिनपूजन करयुं हतुं; तेथी तने आ समृद्धिवंत राज्य मल्युं छे. // 297 // हे राजन् ! वली वासक्षेपनी विशेष पूजाथी वाल्यावस्थामां, राज्याभिषेक वखते अने हवणां पण तुरत विनो P.P.AC.Gunratnaasun MS. * मुनिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, सुतोऽनूंचितनंदनः // 26 // * प्राप्तहर्षप्रकर्षेण नवता जिनपूजनम् // विहितं शुननावेन, प्राज्यं राज्यमिदं ततः ॥ए॥ वासपूजाविशेषेण, तूर्णं विघ्नो व्यंलीयत // बाल्ये राज्यानिषेके च, संप्रत्यपि नेरेश्वर॥शए॥ इति श्रुत्वा मुनेवाचं, नेपो जातिस्मरोऽनवत् // विशेषादोर्हतं धर्म, 'प्रपेदे तस्य संनिधौशए मुनिं नत्वा पुरं गत्वा, पालयित्वा चिरं जुवम् ॥देत्वा कुशलपुत्राय,राज्यं रोजा ग्रेहीद्वैतम्॥३०॥ प्रैपाल्य संयम नव्यन्नावेन से मुनीश्वरः॥विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽनवत् // 31 // 'चिरं सुखान्यसौ क्त्वा, देवलोकात्ततर्युतः॥ ●तुर्थो गैजनामानूतनयस्तव नूपते // 3 // पासे विशेष अरिहंत धर्म अंगीकार करयो. // 299 // पछी मुनिने नमस्कार करी, नगरमा जइ दीर्घकालसुधी पृथ्वीनुं पालन करी अने पुत्र कुशलने राज्य आपी राजा धनराजे चारित्र लीधुं. // 300 // ते मुनि उत्तम भावथी चारित्र पाली अंते अनशन लइ सौधर्म देवलोकने विषे देवता थया. // 301 // (नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहेछे के) हे राजन् ! ते धनराज मुनिनो जीव त्यां दीर्घकालसुधी सुख भोगवी अने पछी देवलोकथी चवीने त्हारो चोथो गज नामनो पुत्र थयो छे. // 302 // // इति वासपूजायां चित्तनंदन कथा. // Jun Gun Aaradhak Trust