________________ PPA Gunnast MS येन केनाप्युपायेन, स्वीकार्यासौ मया ध्रुवम् // पारवश्यं न यात्येषा, यावदन्यस्य कस्यचित ध्यात्वेति स जगौ तातं, रहःस्थित्वा विलऊधीः॥ पुत्रेण यदि कार्य ते, तउक्त कार्यमेव तत् // "आ कन्या जेटलामां वीजा कोइने न परणे तेटलामां म्हारे जे ते उपायथी तेने निश्चे अंगीकार करवी." R // 491 // आ प्रमाणे विचार करीने लज्जारहित बुद्धिवाला तेणे एकांतमा जइ पिताने कह्यु के, “जो तमारे पुत्रनी जरुर होय तो तेनुं कहेलुं एक कार्य करो. // 492 // बुद्धिं कुरुष्व तां तात, कातर्येणोधितां यया॥ वनमाला विशालाको, जायते गुहिणी मम // * मुखे प्रदाय हस्तं स, बन्नाषे किं त्वयोदितम् // सा कयं लभ्यते वत्स, परिणेतुं प्रत्नोः स्वसा॥ Rela हे तात! तमे कायरपणा विनानी तेवी बुद्धि करो के, जेथी विशाल नेत्रवाली वनमाला म्हारी स्त्री थाय." * // 493 // पछी पिताए मुख आडो हाथ राखीने कां के, अरे! पुत्र! ते ए शुं कर्यु ? महाराजानी व्हेन परण वाने शी रीते प्राप्त थाय? // 494 // सोऽवादीत् किं बहुक्तेन, वरं कूपे पताम्यहम्॥ दिपामि कुरिकां कुदौ, नच तिष्टामि तां विना * मंत्री प्रोचे न तेवत्स, नूपजीवतिसान्नवेत् ॥स्वामिशेहोऽपितच्चिंत्यः,सोऽवादीत् कुरुतत्क्षणम पुढे कह्यु. “वधारे कहेवाथी शुं ? बहु सारु, हुं कूवामां पडीश अथवा पेटमा छरी नाखीश, पण तेना र विना नहि रहुं. // 495 // मंत्रीये कह्यु. “हे वत्स ! राजा जीवतो होय त्यांमुधी ते त्हारी थइ शके नहीं. वली राजानो द्रोह ते पण विचारवा योग्य छे.' पुढे कह्यु. " तो तुरत ते स्वामिद्रोह पण करो." // 496 // इति मंत्रं चतुःकर्ण कृत्वा तो निर्गतौ बहिः॥ तथैव चक्रतुदेवा, विषं पद्माय पापिनौ 47 विषेण व्याकुले नूपे, पतिते पृथिवीतले // सा गौरी वनमाला च, मिलितश्च परिबदः 47 ___ए प्रमाणे विचार करी ते बन्ने जणा वहार गया अने ते पापीयोए पद्म राजाने विष आपीने तेवंज कार्य करयु. // 497 // राजा विषथी व्याकुल थइ पृथ्वी उपर पडयो, एटलामां गौरी, वनमाला अने परिवार त्यां आवी पहोच्यो.॥४९॥ KXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun A chat Trust