________________ // 7 // PP.AC.Gunratnasun M.S. गुण तत्र त्रसमं पृथ्व्याः , पुष्पतारकपूरितम् ॥विशाखा सहितं सम्यग, हिजराजविराजितम् 178 चरित्र * नीलामललसवायं, दृढमूलं महत्तरं // प्रतिबिंबमिव व्योम्नस्तरुमेकं ददर्श सः // 27 // त्यां पृथ्वीना छत्र सरखं, पुष्पसमूहथी भरपूर, नानी डालो सहित अने उत्तम पक्षीयोथो सुशोभित 277 * श्याम अने निर्मल शोभंती छापावालु, मजबूत मूलवालुं अने असंत म्होर्ट जाणे आकाशन प्रतिविंव होयनी ? ए, एक वृक्ष ज्ञाड ते सुमतिये दीर्छ. // 178 // तं दृष्ट्वा दध्यिवानेष निरधिष्टायको न हि // तरुर्गुरुतरस्तेन नेतुं नाईति सर्वथा // 279 // तं चेतुमनसं सुत्रधारवर्ग निवार्य सः॥धूपगंधार्चनं कृत्वा, तस्याधस्तानिविष्टवान् // 280 // | ते वृक्षने जोइ चंद्रकुमार विचार करवा लाग्यो के, " निश्चे आ वृक्ष अधिष्टायक विनानुं नथी, माटे ए अत्यंत म्होटुं वृक्ष सर्व प्रकारे छेदी नाखवा जेवू नथी. // 279 // पछी चंद्र ते वृक्षने कापी नाखवाना मनवाला * सुथारोने ना पाडी पोते गंध धूप विगेरेथी ते वृक्षनी पूजा करीने तेनी नोचे वेठो. // 280 // प्रत्यदीनूय तं प्रोचे, व्यंतरस्तदधिष्टित H // प्रीतोऽस्मि तव बुझ्याहमुचितं तरं ददे // 281 // सर्वत्र चिंतितः पुष्पप्रकरो नवतः पुरः॥ नवितैत्येवमाकण्य, तं प्रोचे सचिवांगजः // 28 // ते वखते वृक्षना अधिष्टायक व्यंतरे प्रत्यक्ष थइ तेने कह्यु के, " हुं त्हारो बुद्धिथी प्रसन्न थयो , माटे यो*ग्य वरदान आपुंछु के, // 28 // त्हारी आगल सर्व स्थानके चिंतववाथी पुष्पनो ढगलो थशे." व्यंतरनां PS आवां वचन सांभली प्रधान पुत्रे तेने कह्यु. // 282 // वरो मेऽस्तु परं सौधे, नारपट्टोविलोक्यते॥अनेन शाखिना सोऽयं, समर्थ खलु जायते 583 // ततो मेऽनुमतिं देहि, यथा कार्य विधीयते॥स प्राहच्छेदने नालमन्येषामपि शाखिनाम् // 7 // ___ मने ए वरदान हो, परंतु महेलने माटे वार वाट जोवे छे अने ते आज वृक्षथी थाय तेम छे. // 283 // माटे मने अनुमति आप के, जेथी कार्य कराय." व्यंतर कयं के, " बीजापण वृक्षोने कापवानुं कांइ प्रयोजन नथी. // 284 // 1330 Jun Gun A chat Trust