________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. ततस्तत्तोल्यते वस्तु, समस्तमपि कोविदः॥ वस्तुनो यत्प्रमाणं स्याङ्गजेंऽस्यापि तनवेत् २६ए / * श्रुत्वेति सचिवो दध्यौ, नास्या बुहिरियं कुतः // किंतु गर्नस्थितस्यैव, कस्यचिद्भाग्यशालिनः॥ * पछी पंडीत पुरुषोए ते सघली वस्तु तोली जोवी ते वस्तुनुं जे प्रमाण थाय ते हाथी, पण जाणवू. " // 269 // प्रियानां आवां वचन सांभली मंत्री विचार करवा लाग्यो के, " आ बुद्धि एनी नथी. परंतु गर्भमां रहेलाज कोइ भाग्यवंतनी छे." // 270 // . चिंतयन्नित्यसौ गत्वा, नृपायादातउत्तरम्॥ तद्बुधिरंजितः सोऽस्मै, विशेषान्मानदोऽनवत५७१ समये सुसुवे सूनुः, सत्यवत्या शुन्ने दिने // तस्मै सुमतिरित्याख्या, सचिवः सोत्सवं दधौ२७२ ए प्रमाणे विचार करता मंत्री राज्यसभामां जइ राजाने तेनो उत्तर आप्यो तेथी ते मंत्रोनी बुद्धिथी प्रas सन्न थयेलो राजा तेने वधारे मान आपवा लाग्यो. // 271 // पछी सत्यवतीये अवसरे शुभ दिवसे पुत्रने जन्म आप्यो. प्रधाने उत्सव करी तेनुं " सुमति ' एवं नाम पाडयुं. // 272 // वईमानः कलाशाली, कमात्तारुण्यमाप सः // अन्येद्युYनुजा मंत्री, समाहृत्येति नाषितः // Jun Gun Aaradhak Trust त्रीने बोलावीने आ प्रमाणे कडं के. // 273 // " म्हारा महेलने माटे अरण्यमांथी लाकडां लइ आवो. "मधान " बहु सारं." एम कही घेर आव्यो. आ वात मुमतिये जाणी तेथी तेणे पिताने कह्यु के, // 274 // अहं गत्वा समानेष्ये, तानीत्युक्त्वा जगाम सः // सूत्रधारैः सहाटव्यां, संकुलायां लताडुमैः॥ "हुँ जइने लाकडां लइ आवीश." एम कहीने ते सुथार सहित लता अने झाडोथी भरपुर एवा वनमां गयो. // 275 / / जे वनमां ताल हंताल, मायुर खजूर, अर्जून अने चंदनना असंख्यात वृक्षो झाडो अने चारे तरफ पर्वतो पण हता. // 276 //