________________ PPA Gunratnasuti MS खाणाय छे. कारण के, जे जिनपूजन विना माणसोने सम्यक्त्व पण निश्चे नथी प्रकृल्लित यतुं. // 13 // तेमा | पण जिनपूजन विधिीज करवं. अहो ! युक्तिथी करेलु औषध गुणने अर्थे थाय छे // 14 // जे माणसो जिनराजनी पूजा करीने निरंतर भोजन करे छे, तेओर्नु भोजन सवे जंतुने विष आहार कहेवाय छ. // 15 // आ वखते कोई विद्वान् मुनिये नरवा केवलीने पूछयु के, “आ माधुओ जिनराजन पूजन करचा विना पण साधु ( श्रेष्ट ) केम कहेवाय ?" // 16 ॥मुनि नरवाए कह्यु. " पूजाना वे भेद कहेला छे. एक द्रव्य पूजा अने वीजी * विधिनैवै विधातव्यं, तेत्रापि जिनपूजनम् // गुणाय जायते युक्त्या, कृतं नेजमप्यहो 14 विधाय पूजा जैनी ये, नोजनं कुर्व तेऽन्वहम् // नोजनं कथ्यते तेषामाहारः शेषजंतुषु 15 अंत्रांतरे मुनिःकश्चिद्विपश्चित् प्रचतिस्मतेम्॥जिनपूजां विनाप्यते ,साधवःसाधवःथम् // 16 // मुनिः प्रोवाच पूंजाया, नेदध्यमुदाहृतम् ॥एका हि इयतःपूजा, हितीयों नावतः पुनः॥ व्यपूजां प्रकुति, विरताविरता जनाः सर्वसावधविरता, नावपूजां तु साधवः // 17 // नावपूजा निरारंना, सारंन्नं व्यपूजनम् // ज्ञातव्यो कूँपदृष्टांतो, जिनानां द्रव्यपूजने॥१॥ - अथ प्रस्तुतमाचख्यौ,मुनिः श्रृणुत नोजनाः // नोजनावसरे नूनं, जिनः पूज्यो निरंतरम् // मुख्यरीतिरियं ज्ञेया, त्रिसंध्यं यकिनार्चनम्॥अभावे जिनपूजाया, नूनं कार्या नमस्कृतिः॥ अत्रांतरे नेपोऽवादोदंतर्वक्तुं नै थुज्यते // तथापि क्रियते पृर्ची, 'हृदि माँति ने कौतुकम्॥श्शा भावपूजा // 17 // तेमां विरति अने अविरति माणो द्रव्य पूजा करे छे, अने सर्व सावद्यथी विरति पामेला साधुओ भावपूजा करे छे. // 8 // भावपूजा आरंभरहित छे अने द्रव्यपूजा आरंभ सहित छ. जिनेश्वरोना द्रव्यपूजनने विपे कूपदृष्टांत जाणवो. // 19 // पछी मुनिये प्रस्तुत वात कही के, हे भव्य ननो ! सांभलो. निश्चे भोजन करवाना अवमरे निरंतर जिनेश्वरनु पूजन करवू. // 30 // मुख्य रीत तो आ पमाणे छे के, त्रणे काल जिनपूजन करवू, अने जिनपूजन न बनी शके तेम होय तो निश्चे जिनेश्वरने नमस्कार तो करवो. // 21 // आ kkkkkXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXSI Jun Gun Aaradhak Trust