________________ गुण // 1 // P.P.A. Gunratnasuti MS // 4 // देवांगण थये छते ते सतर पुत्रो पार्श्वनाथ प्रभुने प्रणाम करया विना धावता नहि // 5 // ते वात जा- चरित्रं. णीने सर्व माणसो आश्चर्य पामवा लाग्या. एटलापां संदेहरूप अंधकारने नाश करवाने सूर्यरूप नरवर्मा केवलो आव्या. // 6 // पछो अंतःपुर अने परिवार महित गुणवर्मा राजा मुनिने नमस्कार करवा गयो. त्यां तेणे सुवर्णना कमल उपर वेठेला अने सुर असुरोए सेवन करेला ते नरवर्मा केवलाने दाठा. // 7 // गुगवर्मा ते केवलोने मदक्षिणा करवा पूर्वक बहु आदरथी प्रगाम कग अने तेमना मुख सामु जोईने शुद्ध पृथ्वो उपर वेठो / 8 / जाते देवांगणे राजपुत्राः सप्तदशापिते // अप्रणम्य प्रलं पाच, स्तन्यपान न चक्रिरे // 5 // तत्झौत्वा कौतुकं "वित्रत्यन्वहं सकले जने // केवली नरवर्मागीत् , संदेहतिमिरार्यमा // 6 // सांतःपुरपरीवारो, मुनि नंतु नृपो ययौ // ददर्श स्वर्णपद्मस्यं, तं सुरासुरसेवितम् // 7 // से तं प्रदक्षिणीकृत्य, प्रणम्य परमादरात तक्रन्यस्तनेत्राब्जो, निविष्टः शुनूतले // 7 // बालयोग्यानलंकारान्, विवाणा (पशालिनः // पत्राः संन्नासरस्यांते, राजहंसा इचार्ययुः॥ देशनां क्लेशनाशाय, मुनिश्चक्रे सुधोपमाम् // अस्मिनसारे संसारे, सारं धर्मो विधियत्ताम् // धर्मेण विपुला जोगा, धर्मेण सुरसंपदः ॥धर्मेण पुत्रमित्राणि, सर्वसौख्यानि. धर्मतः // 11 // तानि धर्मरूपाणि, पंचवा हादशाया / दानं शीलं तपो नोवो, धर्मन्नेदा अनेकशः॥१॥ आद्यं पुण्यं च तंत्रापि, श्लाध्यते जिनपूजनमायद्विनी ने हिसम्यक्त्वमपि पंफुल्यते नृणाम् / | बालकने योग्य एवा आभूषणोने धारण करनाग अने रूपवंत एवा ते गुणवर्माना सत्तर पुत्रो सभारुप तलावनो | समीपे राजहंसोनी पेठे आव्या. // 9 // पछी मुनिये क्लेशना नाशने अर्थ अमृतना सरखी देशना आपी के, "हे भव्यजनो! आ असार संसारमा माररूप धर्म करो. // 10 // धर्मथी घणा भोगो, धर्मथी देव संपत्ति, धमथी पुत्र अने मित्रो तेमज धर्मथी सर्व प्रकारना सुखो प्राप्त थाय छे. // 11 // धर्म रूप व्रतो पांच अथवा वार छ. दान, शील, तप अने भाव एवा अनेक धर्मना भेटो छे. // 12 // वली तेमां पण मुख्य पुण्य जिनपूजन व- // // Jun Gun Aaradhak Trust