________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. A मनी कुमारी छे. // 191 // वीणामां अति प्रवीण तेमन गीतगानमा बहु कुशल एवी ते गंधर्वमालाए पोतानी सखोयोना समक्ष एवी प्रतिज्ञा करी के, // 192 // विजेष्यते यो वीणायां, गीतागानेऽपि मां नरः // स खेचरःपरो वास्तु, वरणीयः स एव मे // | तत्र विद्याधराः सर्वे, मिलिष्यति महाबलाः॥ अबलाया मनस्तस्या, न जाने को ग्रहीष्यति॥ जे पुरुष वीणामां अने गीत गानमां पण मने जोतशे, ते विद्याधर हो अथवा बीजो मनुष्य हो, परंतु तेज म्हारे वरवा योग्य छ. // 193 // त्यां महावलवाला सर्वे विद्याधरो एकठा थशे; परंतु है नथी जाणतोकेर अबलानुं मन कयो पुरुष ग्रहण करशे. // 194 // अद्य स्वयंवरो नावी, सांप्रतं तत्र पत्तने // अस्मिन्नवसरे सोऽहं, वेगवानागतो नवम् 155 * अदृश्य एव प्राप्तःप्राकू, पुरं तव मनोहरम् // नत्या प्रगतवानस्मि, जिनेडान जितना आजे ते नगरमां हवणां स्वयंवर थवानो ने. आ अवसरे ते 9 वेगवान् पृथ्वो उपर आव्योहोरी प्रथम है अदृश्यज त्हारा मनोहर नगरे आव्यो हतो अने त्यां भक्तियां जिनमंदिरने विषे जिनेश्वर करतो हतो. // 196 // नवांस्तत्र मया दृष्टो, जिनेश्मुपवीणयन् // त्वां वीक्ष्य तस्या योग्योऽयमेवेति हामि नत्वा जिनं त्वामायातमत्र मित्रत्वसस्पृहः // नपकतुमनास्तस्या, विवाहेनाहमागतः॥१॥ त्यां में तने जिनेश्वरनी आगल गायन करतां दोठो. तने जोइने में " ते कन्याने आज योग्य छे." एस उदयमां चिंतव्यं. // 197 // जिनेश्वरने नमस्कार करी अहिं आवता एवा तने ते कन्याना विवाहथी उपकर करवाना मनबालो तेमज हारा मित्रपणानी स्पृहावालो हुं त्हारी पासे आव्यो. // 198 // कत्वा चंपकमालास्थ, हेमवर्ण मधुव्रतम् // औचित्यं च वचस्तस्या, योगतः कथितं मया॥ त्वमागच मया साकं, यथा नीत्वा कणादपि // तस्याःपाणिग्रहं तत्र, कारये सुहृदं निजमा Jun Gun Aaradhak Trust