________________ रण // 9 // PP.AC.Gunratnasus M.S. माळारुप छे अने तु ए गंधर्वमालाने विषे भ्रमररूप था. // 183 // गंधर्वमाला उत्तम अंगवाली छे अने तुं सुवर्ण चरित्र समान कातिवालो छे, माटे जगतना आनंदने माटे तमारा बन्नेनो योग थाओ." // 184 // | तच्छ्रुत्वा नूपन्नूर्दध्यौ, जल्पंतो वीदिताः शुकाः॥ ब्रमरा न पुनः क्वापि, महदेव कुतुहलम् // गंधर्वमाला बाला का, कुतस्तस्याश्च संगमः // केवलं ब्रमरो नासौ, खेचरो वामरोऽस्तु वा॥ ___भमरानां आवां वचन सांभली राजपुत्र विचारवा लाग्यो के, " पोपटोने बोलता जोया छे, परंतु क्याइ पण भमराने बोलता जोया नथी. आ एक म्होटुं आश्चर्य छे. // 185 // गंधर्वमाला कन्या कोण ? अने तेनो समागम क्यांथी होय ? निश्चे आ भमरो नथी, परंतु कोइ विद्याधर अथवा देवता हशे"!! // 186 // एवमेव वदत्यस्मिन्नलिरूपं विहाय सः॥ तत्क्षणं खेचरो जझे, सर्वालंकारसुंदरः // 187 // विलोक्य विलसत्कांतिं, तं चित्राभूपन्नूजगौ॥ कस्त्वं नो खेचरं मन्ये, स्पृशनिश्चरणैनूवम् // ___ कुमार आ प्रमाणे कहेतो हतो एवामां ते, भमरानुं रूप त्यजी दइ तुरत सर्व प्रकारनां अलंकारोथी सुंदर / एवो विद्याधर थयो. // 177 // राजकुमारे देदीप्यमान कांतिवालाने जोइने आश्चर्यथी कह्यु के, “हे भाइ ! तुं / B कोण छे ? तुं पगवडे पृथ्वीनो स्पर्श करे , माटे हुँ तने विद्याधर धारुंछु." // 188 // स प्राह शृणु वैताढ्ये, पुरे संगीतनामनि // वर्तते गीतरत्याख्यः, खेचराणां शिरोमणिः // * जयादेवीप्रसूतास्य, सुता कनकमालिका // मयोढा वेगवन्नाम्ना, मणिचूमस्य सूनुना ॥१ए तेणे कडं. " सांभल. वैताढय पर्वत नपर संगीत नामना नगरमां विद्याधरोनी मध्ये शिरोमणि एवो गीतरति नामनो विद्याधर छे.॥ 18 // // ए गोतरति जयादेवाथी उत्पन्न थयेली कनकमाला नामनी पुत्री छे के, जेने मणिचूड विद्याधरनो पुत्र वेगवान् नामवालो हुं परण्यो छु. // 190 // तस्या एवानुजा संप्रत्यस्ति गीतरतेः सुता // वाला गंधर्वमालारख्या, शाला सर्वगुणावलेः॥ वीणायां सुप्रवीणा सा, गीतागने सुकौशला // इति प्रतिज्ञामादत्त, सखीवृंदसमकम् // , हवणां ते कनकमालानी नानी व्हेन के, जे गीतरतिनी पुत्री अने सर्व गुणोनी भूमि एवी गंधर्वमाला ना // 9 // Jun Gun Aaradhat Trust