________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. उच्छळवा लाग्यु. // 62 // वलो ते वखते तेओनां हृदयने विदारी नाखनारो मेघ गाजवा लाग्यो, तेथी ऊख पामता एवा ते सत्तरे कुमारो विचार करवा लाग्या के-॥ 63 // आपणे पूर्वे बाल अवस्थामां क्रीडा करवापणाने लीधे कांइ पुण्य करी शक्या नहि यने त्यार पछी वेपारथी आपणुं मन व्याकुल थइ. गयु. // 65 // विवेकवंत एवा ते धनदलना पुत्रपणाने पामेला आपणे काइ पुण्य करयुं नहि, तेथी आपणो जन्म निरर्थक गयो. // 65 // वली ते वखते ते मुनिना वचनथी आपणे जिनपूजन करयुं डे, तेदा गर्ज पर्जन्यस्तेषां हैदयपाटकः // खिताश्चितैयामासुस्ततः सप्तदशापि ते // 63 // ने लीलावतया पूर्व, पुण्यं किंचिपार्जितम् // ततश्च व्याकुलं जातं, व्यवसायेन मानतम् 65 धनदत्तस्य तस्यापि, पुत्रैर्वृत्वा विवेकिनः॥ अस्मानिन कृतं पुण्यं, गतं जन्म निरर्थकम् 65 तदा तस्य मुनेर्वाचा, विहितं जिनपूजनम् // तदेतदवलंवोऽस्ति, तत्पादाःशरणं च नः॥६६॥ त्यं चिंतयतां तेषां, बोहित्थं बुंडतिस्म तत् // अन तेषां गतिं वक्ष्ये,श्रूयतां नो प्रेथक् प्रथक् // येन पूर्व प्रनोः स्नात्रं, कृतं तस्य निगद्यते // अत्रीस्ति नरतोत्रे, पुरं पद्मपुरानिधम्॥६॥ आनंदस्तत्र नूपोऽनूदानंद इव मूर्तिमान् // जयंतीनाम तैपट्टदेवी देवीचे रूंपतः // 6 // * दैत्ताख्यः श्रेष्ठिसूस्तस्या, नदरे सेमवातरत् // स्वप्ने सरोवर पूर्ण, तूर्णमालोकितं तया // 7 // * माटे तेज आपणने आधार छे, अने ते जिनेश्वरना चरणो आपणुं शरण छ. / / 66 / / ए प्रमाणे विचार करता एवा ते कुमारोनुं वहाण दूडी गयु. (श्रो नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के,) हे राजन् ! हवे ते सत्तर - दा जूदा गात कडेछु ते तु सांभल. // 67 // पूर्वे जेणे प्रभुने स्नान करयुं छे, तेनी गति कहेवाय छे. 2 आ जरतक्षेत्रमा पद्मपुर नामर्नु नगर छे.॥६८॥ ते नगरमां जाणे मूर्तिमान आनंद पोतेन होयनी! एवो आनंद नामनो राजा हतो. रूपथी जाणे देवी पोते होयनी! एवी ते राजाने जयंती नामनी पट्टराणी हती. // 69 // | जयंतीना उदरने विषे ते शंठना दत्त नामना पुत्रनो जीव अवतरचो. ते वखते राणीचे तुरत स्वमामां पाणोथी Jun Gun Aaradha Trust