________________ PPA Gunun MS as श्रुत्वा पूर्वनवं गंधराजो जातिस्मरोऽनवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपदे गुरुसंनिधौ // 163 // | नृपः सिंहस्ततःपार्श्वे, सूरेः संयममग्रहोत् // गंधराजः पुरं गत्वा, निजराज्यमपालयत्॥१६॥ - गंधराज पोतानो पूर्वभव सांभली जातिस्मरण ज्ञान पाम्यो, तेथी तेणे गुरु पासे विशेष अरिहंतनो धर्म A आदरयो. // 163 // पछी सिंह राजाए मूरिनी पासे चारित्र लीधुं अने गंधराज नगरमा जइ पोताना राज्यनु पालन करवा लाग्यो. // 164 // अन्यदा तत्र संप्राप्ता, जयशेखरसूरयः॥ धर्मोपदेशं गत्वासौ, शुश्राव सपरिचदः // 165 // आरामनंदनो कुरिजातं नंदननामकम् // राजा न्यस्य सुतं राज्ये, तेषां पार्वेऽग्रहोदतम् // कोइ वखते त्यां जयशेखर सूरि आव्या. परिवार सहित राजा गंधराजे सूरि पासे जइ धर्मोपदेश सांभल्यो. // 165 // पछी गंधराजाए आरामनंदनीना उदरथी उत्पन्न थयेला नंदन'पुत्रन राज्य सौंपी पोते ते गुरु पासे चारित्र लीधुं. // 166 // प्रपाल्य निरतिचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽन्नवत् // | चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्चयुतः // तनयस्तव संजझे, चक्रपाणिश्चतुर्दशः 168 __ अतिचार रहित श्रेष्ट नज्वल एवा चारित्रने पाली अंते अनक्षन लइ ते गंधराज सौधर्म देवलोकमां देवता थयो. // 167 // (श्री नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के, ) हे राजन् ! ए बहु काल सुख भोगवी त्यांची चवीने त्हारो चउदमो चक्रवाणि नामनो पुत्र थयो छे. // 168 // // इति धूप पूजायां श्रीदत्त कथा समाप्त. // Jun Gun Aaradhak Trust