________________ V Gurbatasun MS मया पूर्वनवेऽकारि, शैवधर्मोऽन्वहं पुनः // जिनधर्मसमो धर्मो, न नूतो न नविष्यति 523 वनमालापि मृत्वात्पुर्यामस्यां धनेशतुः॥ धनेश्वरानिधानस्य, रत्नश्रीरितिपुत्रिका // 5 // - में पूर्वभवमां निरंतर शिवधर्म पाल्यो छे, परंतु जिनधर्म समान धर्य कोइ थयो नथी अने थशे पण नहि. // 523 // वनमाला पण मृत्यु पामोने आ नगरीमां धनवंत धनेश्वर शेठनी रत्नश्री नापनी पुत्रो थइ छे. // 52 // साधुना यौवनेनालं, कृता लावण्यसाधुना // तद्दोधाय समेतोऽस्मि, सा पुनर्नैव वुध्यते 555 तस्याःस्वप्ने मया स्वर्गा नरकाश्चापि दर्शिताः // मालास्वप्नानहं पश्यामीति प्रातर्जजल्प सा ते रत्नश्री हवणां उत्तम लावण्यवाला यौवनथी अलंकृत थइ छ, हुं तेने बोध करवा आव्योछं. पण ते वोध पामती नथी. // 525 // में तने स्वमामां स्वर्ग अने नरक देखाड्यांः पण तेतो एम कहे छे के, में स्वप्नामां * मालानां स्वमो जोयां छे. // 526 // . दिव्यनाट्यध्वनिश्चके; चैकविंशतिवासरान् // परंतस्याः प्रमीलायां, न सोऽनूत्कर्णगोचरः॥ प्रत्यहीनूय चेत्किंचित्स्वरूपं कथयाम्यहम् ॥नीता विमुच्य पूत्कार, सा तन्नश्यति बालवत॥ में एकविश दिवस सुधी रात्रीये दिव्य एवा नाट्यनो शब्द करयो, ते पण तेना कानमां प्राप्त थयो नहीं. अर्थात् तेणे सांभल्यो नहि. // 527 // जो हु प्रत्यक्ष थइ तेने काइ कहेबा जाउंछु तो भय पामी बालकनी परे बूमो पाडोने नाशो जाय छे. // 520 // एवं विधे स्वरूपेऽस्याः, कथं धर्मः प्रकाश्यते // ग्रामं विना कुतःसीमा, विना पुत्रं कुतःकलम | त्वं तु पूर्वकृतप्राज्यपुण्यसंन्नारसंश्रितः॥ स्वयमेवशृणोष्येनं, दिव्यनाटयध्वनि निशि // 30 // ___आ प्रमाणे वात तो पछी हुं तेने धर्म शो रोते कहुं ? कारण गाम विना सोमा क्याथी होय, अने पत्र 2 विना कुल क्यांथी होय ? // 525 // परंतु तु पूर्वे करेला उत्तम पूण्यसमूहने आश्रय करी रहेलो छ के, जेथी तुं पोते रात्रीने विपे ए दिव्य नाट्यशब्दने सांभले छे. // 530 //