________________ PPA Gunratt MS 2 पादित वक, मत्रा प्रोवाच सादरम् // सत्यं तदेव हे देव, यन्मुनिर्वक्ति वत्सलः॥५१॥ चारत्र प्रोचे प्रबुद्धे नूपस्तं, राज्यं क्वापि निधीयताम् // अपुत्रोऽहं यथा दीदां,गृह्णामि मुनि संनिधौ॥ पछी राजाए मंत्रीना मुख सामु जोयु एटले मंत्रीए आदरथी कह्यु के, " हे देव ! प्रीतिवंत एवा मुनि जे कहे छे ते सत्य छे." // 515 // पछी प्रबोध पामेला राजाए कह्यु के, " म्हारुं राज्य कोइने सोंप के, जेथी अपुत्र एवो हुं मुनिनो पासे दीक्षा लन" // 516 // . तशज्यं सागरायैव, दत्वा मंत्रिनरेश्वरो // पार्श्वे प्रावृजतां तस्य, साधोः साम्यरसान्वितौ // प्रतासमितिर्वाचः साधुनामिति सागरः॥ शिवधर्म परित्यज्य, जिनधर्मपरोऽन्नवत् // 51 // ठी ते राज्य सागरकमारने सोंपी शमतावंत एवा मंत्री अने राजाए ते मनि पासे दीक्षा लीधी साधुनी समिति अने वाणी अद्भूत होय एम जाणी सागर राजाए शिवधर्म सजी दइ जैनी दीक्षा लीधी.॥५१८॥ तान्यां युगे गते साधौ, सागरः पृथिवीपतिः॥ तज्ञज्यं पालयामास, रेमे च वनमालया५१० वनमालान्यदा स्वप्ने तातं वीक्ष्य, तपस्विनम्॥ नृपानुमत्यागत्वतत्पाा जाता तपस्विनी५३० पठी ते नवा वे साधु सहित चंद्रमुनि चाल्या गया एटले राजा सागर ते राज्यनु पालन करवा लाग्यो अने वनमालानी साथे क्रीडा करवा लाग्यो. // 519 // कोइ बखते वनमालाए स्वप्नमां पोताना पिता तापसने दीठा, तेथी ते सागरनी रजा लइ त्यां जइ अने तपस्विनो थइ. // 520 // .. .. काले शंकरराजर्षिर्णहितानशनस्तया // प्रोचे तात त्वया बोध्याहं नवेत्र परत्रवा // 521 // तत्प्रपद्य मृतः सोऽनूझ्यंतरेंशे नुवस्तले // परिज्ञेयः स एवाहं, नवतःपुरतःस्थितः // 522 // ...पछी शंकर राजपिए अवसरे अनशन लीधुं ते वखते ते वनमाला पुत्रीये तेमने कह्यु के, " हे तात ! तमारे पने आ भवमा अथवा बीजा भवमा प्रवोध पयाडवो. // 521 // पछी ते वात कबुल करी शंकर राजर्षि मृत्यु पामीने पृथ्वीना नोचे व्यंतर देवता थयो. ( रत्नसिंह राजकुमारने व्यंतर देवता कहे छे के, ) तेज व्यंतर देवता त्हारी आगल उभेलो मने तुं जाण. // 522 // 113 / /