________________ PPGMS * अस्मिन्नवसरे तौ द्वौ, दध्यतुनिज चेतसि // सा कुबुद्धि कृतावान्यां, यया प्राप्तः कुलक्षयः॥ मुनिः प्रोचे तयोर्नाम, कथ्यमानं निशम्यताम् ॥रागोषस्तथा तौ हौ, प्रत्यासन्नौ शरीरिणाम् ___ आ वखते मंत्री अने तेनो पुत्र ते बेजणा पोताना चित्तमा विचार करवा लाग्या के, “आपणे तेवी कुछ दि करी के जेथी कुलनो क्षय प्राप्त थयो. // 507 // मुनिए कह्यु. "तेओर्नु नाम कहुंछु ते तुं सांजल, " राग . अने द्वेष" आ बन्ने शत्रुओ माणसनी पासेज रहे छे. / / 578 // * यत्र रागो नवेत्तत्र, षो नवति निश्चितम् // सानिध्यं नवतः शश्वविख्यात वैरिणस्तयोः तो त्वं मूलादपि झि, यदि सत्यप्रतिज्ञता // एवमुक्त्वा स्थिते साधौ, सर्वःकोऽपि विसिष्मिये ज्यां राग त्यां द्वेष होय छे. वली ते त्हारा प्रसिद्ध शत्रुओ हमेशां हारी पासे रहे छे. // 579 // जो त्हारी प्रतिक्षा सत्य होय तो ए वन्ने शत्रुओने तुं मूलमाथी छेदी नाख." आ प्रमाणे कहीने मुनि वेसी रह्या एटले सर्वे RTE लोको विस्मय पाम्या. // 510 // .. मोजतुर्मंत्रिपुत्रौ च, स्पृशंतौ चरणौ मुनेः॥ नाग्येन सर्वलोकानां, बनूव नवदागमः॥५११॥ पुनर्जूपं मुनिःप्रोचे, नराः सर्वे नराधिप // प्रेरिता रागद्वेषान्यामकृत्यानि प्रकुर्वते // 512 // पछी मंत्री अने तेना पुत्रे मुनिना चरणने स्पर्श करता छतां कह्यु के, “सर्वे लोकोना नाग्यथीज आपनं अहिं आवq थयुं छे." // 511 // मुनिए फरी राजाने कर्यु के. " हे राजन्! रागद्वेषथी प्रेरायला सर्वे माणसा अकृत्य करे छे. // 5 // 2 // | प्रस्तरेणाहतः क्लिवः, प्रस्तरं दष्टुमिच्छति // मृगारिस्तुशरं प्राप्य, शरोत्पत्तिं विलोकयेत् 513 यत्प्रेरितेना केनापि, विषं दत्तं तवाधुना // तन्नाम्नि कथिते किं स्याशंगं देषं च संहर // 14 // पथ्थरथी मरायलो कुतरो पथ्थरने करडवानी इच्छा करे छे अने सिंह वाणना प्रहारने पामीने ते वाणना याववाना मार्गने जावे छे // 513 // हवणां जेना प्रेरवाथी कोइये तने विष आप्युं हतं, तेना आपवाथी शं यवानुं छे, माटे रागद्वेपनो नाश कर." // 514 // . Sun Gun Aaradhak Trust