________________ गुण // 4 // PP.AC.Gunratnasun M.S. से जगौ शकटा एते, राज्ञस्तुरंगहेतवे // नीलैर्यवैनृतो याति, गुणन् माज नैरहम् ॥११॥चा सा प्रोचे कातरः कीद्वंग , वर्तसे त्वं वस्तले // अयं चक्रधरो योति, नार्यया सह मृत्यवे॥ ... बकराए का " लीला जवथी भरेला आ गाडाओ राजाना घोडा माटे जायछे, माटे जो हुं तेमांथो लघु तो माणसोनो मार खावो पडे. // 115 // बकरीये कह्यु. "पृथ्वी उपर तु केवो कायर छ ? आ चक्रवर्ती - राजा पण स्त्रीनी साथे मृत्यु पामवाने मारे जायछे, // 116 // से प्रोचे केवलं नाम्रा,बोकटोऽस्मि परं नृपः॥ परिणामेन यः स्यर्थे,वृथा रोज्यं समुज्झति॥ श्रुत्वेति सस्मितश्चक्रो, व्यावृत्तः स्वगृहं प्रति ॥प्रोचे प्रिये वयं योमस्त्वया गेम्यं यथारुचि॥ _.. बकराए कह्यु. “हुँ फक्त नाम मात्रथी वकरो छु; परंतु राजा तो परिणामथी बकरो छे के, जे स्त्रीने मारे न राज्यने वृथा त्यजी दे छे." / / 117 // बकराना एवां वचन सांभली हास्यसहित ब्रह्मदत्त चक्री घर तरफ पाछो चाल्यो. वली तेणे स्त्रीने कडं के," हे प्रिये! अमे घरे जइए छीए अने हारे मरजी प्रमाणे जवू."॥११८॥ श्रुत्वेति'नॅपतिं वीक्ष्य,प्रेयांत स्वगृहं प्रति॥ लोके हँसति संप्राप्ता,विलेंदा सोपि" मंदिरेम्॥ ब्रह्मदत्त कथासैषा, नरतेऽर्थ नविष्यति // जूतवनविनां प्रोन्यमित्यतीता मैयोदितौ // 10 // ए प्रमाणे सांभली अने पोताना घर प्रत्ये जता एवा राजाने जोइ लोको हसवा लाग्ये छते विलक्ष थयेली ते पुष्पवती पण घरे गइ. // 119 // आ ब्रह्मदतनी कथा भरतक्षेत्रमा थइ छ, माटे थवा जेवू कार्यज कहे. ए कारण माटे में आ थइ गयेली वात कही छे. // 120 // अंतस्त्वयापि वक्तव्यं, युक्तमेव स्वनर्तरि॥ प्रायः पुमांसः स्वाधिनाः पराधिना हि योषितः॥ सोमश्रीस्ताः प्रति प्रोचे, तत्त्वं शणत हेहेलापर्बलाकिमपि न प्राप्यं गुणे रैव च लेन्यते॥ ____ माटे त्हारे पण पोताना पतिने योग्यज कहेवू. कारण घणुं करीने पुरुपो स्वाधिन होयछे अने स्त्रीयो पराधिन होय छे. // 121 // सोमश्रीये ते सखोयोने कह्यु. " हे सखोयो! तत्त्व सांभलो. बलथी काइपण मलतुं नथी, परंतु गुणथीज मले छे. // 122 // धा Jun Gun Aarada Trust