________________ P.P.A. Gunratnasuti MS "इंदं तावन्मया प्रोक्तं, नवतानिः श्रुतं पुनः॥ समय ज्ञास्यत सव, साप्रत किमु कथ्यत 13 अथ ताः स्वगृहं प्राप्ताः प्रीतिन्नाजः परस्परम् // श्रीदत्तसूनवे देत्ता, सोमश्रीः समहोत्सवम् // प्रथम आ में कहेलुं छे अने तमोए सांभल्युं छे, ए सर्व अवसरे जणाइ आवशे. हमणां शं कहीये. // 123 // पछी परस्पर प्रीतिना पात्ररूप ते सर्वे कुमारीयो पोते पोताना घरे गइ. सोमदेव राजाए पण श्रीदत्त राजाना पुत्र माल्यदेवने महोत्सवपूर्वक सोमश्री आपी. // 124 // श्रीदत्तो माल्यदेवाय,दैत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ गृहीत्वा तापसी दीदी,ज्योत्तिष्केवमरोऽनवत् // माल्यदेवस्तया सोमश्रिया सह मधौवनम्॥ ययौ सयौवनस्तां स, रमयामास 'नंगीनिः॥ पछी श्रीदत्ते पोताना पुत्र माल्यदेवने राज्य आपी पोते तापसीदीक्षा लइ ज्योतिष्क देवताने विषे देवपणुं पाम्यो. // 135 // कोइ वखते माल्यदेव वसंतऋतुमां ते सोमश्री सहित उद्यानमा गयो, त्यां योवनवंत एवो ते सोमश्रीने क्रीडाथी रमाडवा लाग्यो. // 126 // तिश्च नारदो देवगंधर्वोऽष्टापदे जिनम् // नपवीण्य प्रमोदेन, चलतिस्म दिवं प्रति // 17 // तेस्य वीणास्थिता माला पैतिता वायुवेगतः।तस्याः सोमश्रियाः शीर्षे,स्थिता चातपशोषिता॥ एवामां देवगंधर्व नारद अष्टापद उपर जिनेश्वरने स्तवन करीने हपंथी स्वर्ग प्रत्ये जता हता. // 127 // ते * नारदनी वीणा उपर रहेली माला वायुवेगथी पडी गइ अने तापथी करमाइ गयेली ते माला ते सोमश्रीना माथा उपर पडी. // 18 // तो स्रजं सा करे कृत्वा,पश्यंती प्रेयसो मुखम्॥प्रोचे शुष्मापि कीदृता,मौला परिमैलान्विता॥ नेपः प्रोचे प्रिये सेयं,स्वर्गमसमुन्नवा ॥बाल्योक्तं स्ववचः स्मृत्वा,साततो पति गौ // सोमश्री ते मालाने हाथमां लइ पतिना सामु जोती छती कहेवा लागी के, "करमाइ गयेली एची पण आ * माला केवी सुगंधवाली छे.!!! // 129 // राजाए कहूं. "हे प्रिय! ते आ स्वर्गना कल्पवृक्षना पुष्पनी बनावेली माला छे." पछी ते सोमश्रीये बाल्यावस्थामां कहेलुं पोतानुं वचन संभारीने राजा माल्यदेवने कह्यु.॥१३० Jun Gun Aaradhak Trust