________________ A. PAPA Gunratnasuti MS मंदारतरुसंन्नता, माला नव्या प्रेयच्छ में॥अन्यथा नैव नोये , न पास्यामि चे किंचन // चरित्र. // 4 // नृपः प्राह कुतः स्वर्गपुष्पमाला नवेद्भुवि।सा प्रोचे 'जीवितेनालं, सैराज्येनापि तन्मम 135 - "मने मंदारवृक्षनां पुष्पथी बनावेली नवीन माला आपो, नहि तो हूं भोजन नहि करूं; तेमज काइ पण / पान नहि करूं."॥ 131 // राजाए को. “पृथ्वी उपर स्वर्गनां पष्पनी माला क्याथी होय" ? र्गनां पुष्पनी माला क्याथी होय"? सोमश्रीये - कह्यु. " तो म्हारे राज्यसहित एवा पण जीवितथी शरयुं. // 13 // * तेया सह गृहं गत्वा, नृपश्चिंतातुरोऽनवत् // मंत्रिन्निबोधिताप्येषो, न मुंमोच केंदाग्रहम् 133 रात्रौ व्यचिंतय पस्तल्पे सुप्तोऽप्यसुप्तवत्॥ यद्यषा म्रियते तर्हि, जीवितव्येन किं मम॥१३॥ ते सोमश्री सहित घरे जइने राजा माल्यदेव चिंतातुर थयो. मंत्रीयोए बहु समजावी, पण सोमश्रीए पोतानो कदाग्रह त्यजी दोधो नहि. // 133 // रात्रीये शय्यामां सूता छतां न मूतानी पेठे राजा विचार करवा लाग्या के, "जो आ स्त्री मृत्यु पामे तो म्हारे जीववाथी शुं!" // 134 // दुलना स्वस्तरोर्माला, सुलन्नो जीवितव्ययः॥ अंत एंव करिष्यामि, प्रातर्निर्गमनं पुरात् 135 तिध्यात्वा पो, यावनिर्ययौ निजमंदिरात् // आकाशात्पैतिता तावन्माला सैवें मनोहरा॥ स्वर्गना वृक्षनां पुष्पोनी माला दुर्लभ छे अने मृत्यु पाम, ए सुलभ छे, माटे हुं सवारे नगरथी चाल्यो ज2 इश." // 135 // आ प्रमाणे विचार करी राजा जेटलामां पोताना मंदीरथी निकल्यो तेटलामां आकाशी तेज मनोहर माला नीचे पडी. // 136 // अहो चित्रमहो चित्रमिति जल्पनरेश्वरः। सोत्कंगयाःवकांतायाः, कंठे मौलां न्येवीविषत्॥ माला कंठे नीवेईयेनों हष्टा रांझीनकेवलम्॥तस्याःसंख्योऽपि तौःश्रुत्वा,फ्रेमात्यापुःपरामुर्दम् // "अहो! आ आश्चर्य छे ! अहो! आ आश्चर्य छे !!" एम बोलता एवा राजाए उत्साहवंत एवी पोतानी प्रियाना कंठने विषे ते माला पहेरावी. // 137 // एमालाने कंठमां पहेरीने फक्त राणीज हर्ष पामी एम नहोतं.परंत तेनी सखीयो पण ते वात सांभलीने अनक्रमे वह इ पामी. // 138 // // Jun Gun Aaradhak Trust