________________ PP.AC.GunratnasunM.S. A एवं निरंतरं प्रातरेकी माला सेमीयुषी // महेंइसूरिस्तत्रागा चतुझानधराऽन्यदा // 13 // पः प्रियान्वितो गत्वा, वने नत्वा मुनीश्वरम् // श्रुत्वोपदेशं पंप्रड, मालागमनकारणम् // ए प्रमाणे निरंतर सवारे एक एक माला आववा लागी. हवे कोइ वखते चार ज्ञानना धारणहार महेंद्रमुरि * त्यां अयोध्या नगरीमा आव्या. // 139 // सोमश्री प्रिया सहित माल्यदेव राजा उद्यानमां गयो. त्यां तेणे मु* निश्वरने नमस्कार करी अने धर्मोपदेश सांभली मालानुं आश्वानुं कारण पूछयु. // 1.40 // मुनिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, धनेशाख्यः सुतोऽनवत् 141 तेदा धनेशजीवेन यत्त्वया जिनपूजनम् // विदधे शुलावेन, प्रॉज्यं रोज्यं ततस्तव॥१५॥ ___ पछी मुनिये पूर्वभव कह्यो के. हस्तिनापुर नगरमां धनदत्त शेठने धनेश नामनो पुत्र हतो. // 141 / / ते वखते धनेशना जीवरूप तें शुद्धभावथी जे जिनपूजन करयुं, तेथो तने आ समृद्धिवंत एवं राज्य प्राप्त थयुं. // 142 // माल्यपूजाविशेषेण मातुस्ते दोहँदक्षणे // संपुष्पा विहिती वृताः, सर्वेऽपि वनदैवतैः॥१३॥ त्वत्पिता तापसीनूय, ज्योतिष्कामरतां गतः॥ कांता कंदाग्रहे माला, दैत्वा देत्ते पि संप्रति॥ माल्यपूजाना विशेषथी त्हारी माताना दहोलाना अवसरे वनदेवताओए उद्यानना सर्वे पण वृक्षो पुष्पवंत करयां हतां.॥ 143 // त्हारो पिता तापस थइने ज्योतिष्क देवता थयो छे, तेणे त्हारी स्त्रीना कदाग्रहथी तने प्रथम पुष्पमाला आपी हती. वली हवणां पण तेज आपे छे. // 144 // जिनेशे यदि नावेन, पूज्यते मालया तया॥ तदा सँफलता स्वस्य, व्यर्थता स्वांगसंगता॥१५॥ ईतश्च राझी पप्रच, तँदा क्रीडावने मया // संखोनियुतयोलोकि, वानरो वानरैर्वृतः // 146 ___ जो भावथी ते मालाथी जिनेश्वर पूजाय तो पोतानुं सफलपणुं, नहि तो पोताना अंगर्नु संगपणुं (जन्म) वृथा जाणवू. // 145 // एवामां राणीये पूछयु के, “ते वखते क्रीडा वनमां सखीयो सहित में वानरीयोर्थी विंटलायला वानराने जोयो हतो. // 146 // Jun Gun Aaradhak Trust XXXXXXXXX