________________ PPA Gutt MS ... ...... श्री जैन साहित्य न त्यां दुःखथी विलाप करती अने दैवने ठवको आपती ते रत्नमालाने महाकष्टथी छानी राखीने ते शियाले कयुं / के, हे व्हेन ! म्हारं वचन साभल. // 188 // आ पर्वतने विषे मने सुख नथी, माटे हुं बीजे कोइ ठेकाणे जइश. वली बारमे दिवसे बन्न पुत्रनुं प्रेतकार्य कर छे. // 189 / / ते दिवसे त्हारे आवg अने पतिने साथे लाववो." एम कही शियाले रजा आपेली ते रत्नमाला मरजी प्रमाणे घरे आवी. // 190 // वली बारमो दिवस आव्यो एटले ते रत्नमाला पोताना पति सहित गाडीमां बेशीने त्यां गई; तेथी ते शियाल प्रसन्न थई. // 191 // प्रेत नास्ति मेऽगिरौं सौख्यं, यासाम्यन्यत्रत्रचित् // हादशे दिवसे प्रेतकार्य कार्यचपुत्रयोः॥ तस्मिन् दिने त्वयागम्यं, सहानेयस्तुर्वल्लनः।।इत्युक्त्वा शिर्वया स्वैरं",विसृष्टा सा गृहं ययौ॥ दिने तु छांदशे प्राप्ते, सो वकांतेन संयुता॥ आरुह्य वाहिनीं तत्रागमत् पिता , सौ शिवा // तकार्ये कृते सार्वड, निधिरत्रास्ति ग्रहतामनिदेपाटि चे तान्यांसवाहिन्यांचे निवेशितः यं मनुष्यन्नापास्या, इति चिंतयतोतयोः॥ बन्नासेव्यंतरःकश्चिदद्देश्योव्योमनिस्थितः१५३ अत्रैवे नगरे देवदत्ताख्यकपणोऽनवम्॥ निक्षिप्तोनि धिरत्रांसीङातोऽहंव्यंतरस्ततः॥१७॥ अक्षयोनि धिरस्त्येषः, व्ययःकार्य:सदा त्वयों // श्रीजैनमंदिरं काय,स्थाप्यापार्श्वप्रन्नुःपुनः // तस्याधिष्टायकोनांवी, सोऽहंतजक्तितत्परः तस्मिन ताममाप्यस्ति,मोदेस्तने ति कथ्यते कार्य करी रझा पछा शियाले कह्यु के, अहिं रत्नोनो भंडार छे ते ल्यो." पछा ते बन्ने जणाये द्रव्यना भंडारने उपाडीने गाडोमा मूक्यो. // 192 // " आ शियालने मनुष्यनो भाषा केम छे ?" एम विचार करता एवा ते बन्ने जणाने आकाशमां उभेला कोई अदृश्य व्यंतरे कह्यु. // 193 // हुं आज नगरमां देवदत्त नामनो कृपण हतो, आ ठेकाणे में भंडार डाट्यो हतो, तेथी हुँ व्यंतर थयो छु // 17 // आ अक्षय भंडार छे, तेनो तमारे हमेशां व्यय करवो. श्री जिनमंदिर करावQ अने वली तेमां श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा स्थापवो. // 195 // वलो हुं तेमनी भक्तिमां तत्पर थई वेमनो अधिष्टायक थईश. तेज तीर्थमा म्हारो पण मोक्ष छे, माटे हुँ एम श्री Jun Gun Aaradhak Trust