________________ // 3 // PPA Gunnatut MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX अन्यदा ग्रीष्मकालेऽ सौ, स्नात्वा विहितन्नोजनः पुष्पस्त्रग्चंदनालेपशाली तडपमसेवत // तेदा पुष्पवती देवी देवीवाद्भुतरूपन्नाक् // शसनर्मलंकृत्य, निविष्टों चुपतेःपुरः // 17 // ____ कोइ वखते ते राजा उनालानी रुतुमा स्नान करी, भोजन करी अने पुष्पनी माला धारण करवा पूर्वक शरीरे चंदननो लेप करी शय्यामां सूतो हतो. // 101 // ते वखते देवीना समान अद्भुतरूपवाली पुष्पवती राणी भद्रासनने सुशोभित करीने राजानी आगल वेठी. // 102 // चारुकपुरकस्तुरिचंदनवनाजनम् ॥नारपट्टस्थिता गोधा, वीक्ष्य प्राह पति प्रति // 103 // पतित्वा नारपट्टात्त्वं, चंदनवनाजने // आलेपय मँमाप्यंगं, स्वांगसंगेन 'हेप्रिय // 10 // ____ आ वखते भारवाट उपर वेठेली घरोलीये मनोहर कपूर अने कस्तूरिवाला चंदनना रसना पात्रने जोइ पतिने कडं. // 103 // हे प्रिय ! तमे भारवाटथी चंदनना रसना पात्रने विषे पडीने पोताना अंगना संगी म्हारा शरीरने पण लेप करो." // 104 / / इति श्रुत्वा च तंद्राषां, पॅरिझाय च नृपतिः॥ हाश्यं चकार गोधीया,अध्यहो कीदृशी स्पृहा॥ नृपं पुष्पवती 'प्रोचे,तेदृष्टी स्वात्मशंकिता। हास्ये प्राणेश को देतः से जंगी नास्ति कश्चन॥ __आवां घरोलीनां वचन सांभली अने ते समजीने राजा हश्यो अने विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! घ रोलोने पण केवो स्पृहा होयछे. // 105 // ते जोइ पोताने विषे शंका पामेली पुष्पवतोये राजाने कयु. “हे पाणनाथ ! आप शा कारणथी हश्या!" राजाए कह्यु. “काइ नहि." // 106 // मेघाविनां विना हेतुं हास्यं न क्वापि जायते।तेदापास्यामिनोदयेच,यदा त्वं कथयिष्यसि॥ राणीये कह्यु. “बुद्धिवंतने कारण विना हास्य क्यारे पण होतुं नथी, माटे ज्यारे तमे कहेशो त्यारेज हुं * पाणी पीश अने भोजन करीश. // 107 // कयुं छे के Jun Gun Aaradhak Trust 3 //