________________ P.P.A. Gunratnasuti MS धन्या इमास्तिरश्चोऽपि, यासामेवं' वैशंवदः // देदाति वानरः कांतः, कॉमिताः कुसुमस्रजः॥ सोमश्रीस्ता प्रति प्रोचे, "किमेवं कथ्यते हैलाः॥ गुणा एंव विलोक्य ते, नारीणां नर्तृमानदा॥ ___आ तिर्यंचोने पण धन्य छे के, जेमने आ प्रमाणे वश थइ रहेला वानरपति इच्छित एवी पुष्पमाला आपे | छे. // 93 // सोमश्रीये ते सखीयोने कह्यु. “अरे तमे एम केम बोलो छो ? कारण स्त्रीयोना पतिने मान आपनारा गुणोज जोवाय छे. // 94 // यावद्विवाहो मे जातो, हे'संख्यः किल तावता॥ओनाययिष्यते नत्रा, मौला मेरूँतरोरपि // संख्यस्ता प्रोचिरे मुग्धे, वक्तुं नो वेर्सि सर्वथा॥ मानवानां कुतो मेहँस्थितकल्पतरोः संजः॥ ___हे सखीयो ! जेटलामां म्हारो विवाह थयो तेटलामां निश्चे हुं पतिनी पासे मेरुपर्वतना वृक्षना पुष्पोनी माला - मगावीश. || ए | सखीयोए कह्यं. "अरे मुग्धा! तं सर्व प्रकारे बोलावाने जाणती नथी. कारण माणसोने र मेरुपर्वत उपर रहेला कल्पवृक्षनी माला क्याथी होय? // 96 // तावत्मानं प्रयच्छति, यावद्युक्तं हि याच्यते // नारोऽप्यवमन्यंते, त्वयु ते ब्रह्मदत्तवत् 9 // को ब्रह्मदत्त इत्युक्ते, प्रोचे पुत्रो पुरोधसः // पंचालदेशे कॉपीटयपुरमस्ति मनोहरम् // 9 // जेटलुं योग्य याचना कराय तेटलुं त आपे छे, परंतु पतियो पण अयोग्य याचनाने विषे ब्रह्मदत्तनी पेठे के अपमान करे छे." // 97 // "ब्रह्मदत्त कोण?" एम राजकुमारोये पूछयु एटले पुरोहितनी पुत्रीये कयु के, "पांचाल देशमां मनोहर एबुं कांपोल्यपुर नामर्नु नगर छे. // 98 // ब्रह्मदत्तोऽनवत्तत्र, चक्री सुशमसंनिन्नः / तस्मै तहकनागेन, वरो देत्तोऽयमोदृशः॥ए॥ सर्वेषामपि जीवानां, नाषां त्वमवनोत्स्यते // यदा वैदेसि चान्यस्मै, तैदा मृत्युमवाप्स्यसि // त्या ब्रह्मदत्त नामनो इंद्र समान चक्री राजा हतो. ते राजाने तक्षक नागे एवो वरदान आप्यो हतो के.॥१९॥ "तुं सर्वे जीवोनी भाषाने समजीश, पण ज्या ते वात बीजाने कहीश त्यारे तुं मृत्यु पापीश. // 10 // Jun Gun Aaradhak Trust