________________ PPA Gunratnasuti MS वलीने विषे विरोधिनो निग्रह करवानो उपाय कर." // 70 // पछी ते भूत राजाने दिव्य अंजन आपीने अदृश्य थई गयु. पछी योगी पोताने ठेकाणे गयो अने राजा पण पोताने घेर आव्योः // 71 // पछी मुखे सूई रात्रीने निवृत करीने सवारे करयुं छे पोतानु प्रभात कर्तव्य जेणे एवा ते गुणवर्मा राजाये रत्नावलीनी साथे शास्त्र विनोदथी ते दिवसने निवृत्त करचो. // 72 / / पछी रात्रीयें नेत्रमा दिव्य अंजन करी रत्नावलीना घरप्रत्ये गयेला राजाय आकाशलक्ष्मीना काननां कुंडलरूप वैमान दीकुं. // 73 / / पछी रत्नावली सहित ते वैमान उपर सिमेतत्परं स्वार्थ, प्रार्थ येत्यत्राषिणि॥ कुरु में निग्रहोपाय, रत्नावल्यां विरोधिनः // 7 // दत्वा दिव्यांजनं तस्मै,तिरोधत्त सं चेटकः।। योगी ययौ नि स्थान,पोप्यागात् स्वमंदिरम् 71 सुखसुप्तो निशां नित्वा,कृतप्रातःक्रियः प्रग॥ रत्नावल्या समं शास्त्रविनोदै दिन मत्यगात॥७॥ कृत्वा दिव्यांजनं 'नेत्रे,गैतो रत्रावलीगृहम् // नृपो विमानमशतीत्, व्योमश्रीकर्णकुंडलम् 73 तया समं तारुह्य, व्रजनंबरवर्मना // स चैत्यं तुंगमदोर्ताट्यगिरिसंनिधौ // 4 // कृतकोलाहलं हर्षान्नृपः खेचरमंडलम् // ददर्श तत्पुरःस्थं च उँहर्षखेचरेश्वरम् // 5 // नत्तीर्य व्योमयानास,प्रणम्य वृषन्नप्रन्नुम् // अदृश्य एवं तंत्रांस्थाचित्रविक्षणलालसः // 6 // रत्नोवस्यपि तत्रार्हन्मूर्ति नत्वा खंगाझया // ऑयातास्वन्यकन्यासु, नर्तकीवन्ननर्न सा॥७॥ वेसी आकाशमार्गे जता एका राजाये वैताढय पर्वतनी पासे म्होटा जिनमंदिरने दीखें. // 7 // // त्यां राजाये इपंथी कोलाहल करता एवा विद्याधरना मंडलने जोयुं अने तेमनी आगल रहेला विकराल एवा विद्याधर पतिने * पण जोयो. // 75 // पछी गुणवर्मा राजा आकाश वैमानथी नीचे उतरी ऋषभ प्रभुने नमस्कार करी आश्चर्य जोवानी ईच्छा करतो छतो त्यां अदृश्यपणेज उभो रखो. // 76 // रत्नावली पण सां अरिहंत प्रभनी मानिने नमस्कार करीने वीजी त्रण कन्याओ आव्ये छते विद्याधरपतिनी आज्ञाथी ते नर्तकीनी पेठे नृत्य करवा लागी Jun Gun Aaradhak Trust