________________ - PP.AC.Gunratnasun M.S. ए मणिकुंमल त्यां विद्या साधवा माटे रह्यो अने तेणे रत्नाभने पोताना नगर पूजानो सामान लेवा मो- चरित्र कल्यो. // 325 // पछी ते रत्नाभ पोताना मित्रने माटे आकाशमार्गे थइने उतावलो जतो हतो तेमां स्खलना // 11 // पाम्यो, तेथी ते विचार करवा लाग्यो के, " अरे ! अहिं एवो कोण पापो छे के, जेणे मने रोको दोधो" !!! * अधो गवेषयनेष, पश्यतिस्म तपस्विनम् // कुरूपकुचितं कुब्जं,कृष्णवर्णं च वामनम् // 32 // रूपं दृष्ट्वा हसित्वा च, तं बनाये स खेचरः // करोषि स्खलनं कस्मान्मित्रार्थे मम गवतः // ___ पछी नीचे जोता एवा तेणे कुरूपने लीधे खराव, कुन्ज, कालावर्णवाला अने वामणा एचा एक तपस्वीने A दीठा. // 327 // पछी ते विद्याधर तपस्वीना रूपने जोइ अने हसीने कहेवा लाग्यो के, मित्रना कार्य माटे जता एवा मने तमे शा माटे स्खलना पमाडयो // 320 // नीलां कुरूपतामेतां, विलोक्यापि न लजसे॥ धिक् तपस्ते मुघा क्लेशं, यो हि त्वं सहसेऽनिशम् इति तद्वचसा कुठःस तपस्वी शशाप तम् ॥रेखेचर पुराचार, नवान् भवतु मादृशः 330 ___ आ काला कुरूपने जोतो छतो पण तुं लज्जा नथो पामतो ? त्हारा तपने धिक्कार छ के, जे तुं निरंतर | वृथा क्लेशने सहन करे छे." // 329 // विद्याधरना आवां वचन सांभली क्रोध पामेला तपस्वोये तेने श्राप | आप्यो के, अरे दुराचारी खेचर ! तुं पण म्हारा सरखो था. // 330 // ततो निपतितो व्योम्नः, सोऽनूत्तादृश एव हि // पतित्वा पादयोस्तं च कमयामास खेचरः॥ * अज्ञानस्यापराध मे, कमस्वैकं दमाधर // इत्युक्तः शांतहत् किंचित्तपस्वी प्रति तं जगौ // .. पछी आकाशथी पडेलो ते विद्याधर निश्चे ते तपस्वी सरखो थयो. तेथी ते विद्याधरे तपस्वीना पगमां पडी तेमने खमाव्या. // 331 // हे क्षमाधारी! अजाण एवा म्हारो एक अपराध क्षमा करो." आम कहेवाथी काइ शांत थयेला हृदयवाला तपस्वीये ते विद्याधरने कह्यु के. // 332 // नूपप्रियापरिरंन्ने, वामनत्वं गमिष्यति // प्रयास्यति कुरूपतत्वं, राजकन्याकरग्रहे // 333 // * श्रुत्वेति खेचरो दध्याविदं मे घटते नहि // कुरूपता ततः सेयं, यावजिवं समागता // 33 // 11 // Jun Gun Aaradha Trust