________________ PPC Gunun MS ते कन्याना दाथनो स्पर्श थयो एटले तुरतज ते पोतानां कुरूपपणाने त्यजो दइ ते स्कंदिल दिव्यरूप से वालो सुशोभित एवो विद्याधर थयो. // 317 // हार, कुंडल अने बाजुनी कांतिना मंडलथी सुशोभित एवो Re ते अखंड लावण्यवाला इंद्रनी पेठे शोभवा लाग्यो. // 318 // P तकं पूर्णचंद्रानं, तदालोक्य हसन्मुखी // अराकापि बन्नौ राका, श्यामा श्यामापि कांतितः / * पद्मिनोवत्सुवक्रापि, प्रचन्नलोचनांचलैः // पायं पायं तदास्येंदु, श्यामा तृप्तिमवाप न॥३०॥ ते वखते पूर्णचंद्रना सरखी कांतियाळु ते स्कंदिलनु मुख जोइने इसतां मुखवालो श्यामा कांतिथी श्याम * अने अमास पुनमरूप बनी गइ. // 319 // कमलना समान उत्तम नेत्रवाली अने वस्त्रथी ढंकायला नेत्रवाली एवीय श्यामा ते स्कंदिलना मुखरूप चंद्रने पान करती करती तृप्ति पामती नहोतो. // 320 // असौ नाग्यवतो श्यामा, यस्याः सौन्नाग्यसुंदरः॥ पुरंदर श्व प्रेयान् , प्राप्तोऽयं पुण्ययोगतः॥ तऊनन्यां च लोके च, जल्पत्येवं महीपतिः॥ श्यामाखेचरयोश्चके, पाणिग्रहमहोत्सवमा - आ श्यामा भाग्यवाली छे कारणके जेने पुण्यना योगथी इंद्रना सरखो सौनाग्यथो सुंदर एवो आप 5 प्राप्त थयो. // 31 // तेनी मा अने बोजा लोको एम बोलता हता, एवामां राजाए श्यामा अने विद्याध| रनो लग्नमहोत्सव करयो. // 322 // नपो जामातरं प्रोचे, जातं किमिदमत्रुतम् // स जगावस्ति वैताब्ये, पुरं गगनवल्लन्नम 323 मणिकुंडलरत्नान्ननामनौ तत्र खेचरौ // तौ प्रीत्या पर्वतं प्राप्तौ, हीमंतं सुहृदौ मिथः॥३ पछी राजाए जमाइने पुछयु के,"आ आश्चर्य शुं थयुं" 1 तेणे उत्तर आप्यो के, " वैताढ्य पर्वत उपर गगन 21 वल्लभ नामनं नगर छे, // 323 // त्यां मणिकुंडल अने रत्नाभ नामना के विद्याधर रहेता हता. परस्पर पित एवा तेओ प्रीतिथी होमंत नामना पर्वत उपर गया. // 324 // विद्यां साधयितुं तत्र, स्थितोऽसौ मणिकुंझलः॥ रत्नानःप्रेषितस्तेनोपहाराय निज परे 32 // सत्वरं स स्वमित्रार्थ, गछन् गगनवम॑ना // स्खलितश्चिंतयांचके, कःपापोयो रुणहिमाम Jun Gun Aaradhat Trust