________________ . -4 PP.AC.Gunratnasuri M.S. "राजानी स्त्रीनो स्पर्श करवाथी हारु वामनपणुं नाश पायशे अने राजपुत्रीनो हस्तमेलाप थतौं कुरूपपणुं पण नाश पामशे."॥ 333 // तपस्वोना आवां वचन सांभली विद्याधर विचार करवा लाग्यो के, मने ए राजानी स्त्रीनो स्पर्श अने राजकन्यानो हस्तमेलाप घटतो नथी, माटे आ कुरूपपणुं जीवतां सुधो आवी मल्यु. राज्ञः प्रियायाः कन्याया, दर्शनं मम उर्खन्नम् // संसावेत कुतस्तर्हि, परीरंजकरग्रहौ 335 परीरंभं परस्त्रोणां, वारयंतिस्वयं बुधाः // अयं तु कारयत्येतं, तत्त्वं तन्नावबुध्यते // 336 // मने राजानो स्वोर्नु अने पुत्रोनुं दर्शन दुर्लभ छे तो पछी तेमनो स्पर्श अने हस्तमेलाप तो क्याथीज थाय ? // 336 // विद्वान परुषो पोते परस्त्रोयोना मेलापने निवारे छे खार आ तपस्वी परस्रोयोना मेलापने करावे छे, माटे ते तत्त्वने जाणतो नथी. // 336 // एवं मह्यं कुरूपाय, दत्तेऽन्योऽपि न कन्यकाम् // कुतस्तज्ञजकन्यायाः, पाणिग्रहणसंनवः // | वीरेण कपिलादानं, कालान्महिषरक्षणम् // श्रेणिकाय यथा प्रोक्तं, तथानेन ममाप्यदः // आ प्रकारना मने करूपने कोइ साधारण माणस पण कन्या आपे नहि, तो पछो राजपुत्रोनो साथे पा कने कह्यु तेवी रीते एणे मने पण कयुं छे. // 338 // विधीद्वारा निषेधोऽयमनेन कथितो मम // भेरीनुढं तरुबायायोगो रोगापहो यथा // 33 // इत्यादिध्यायतस्तस्य, वने तत्रैव तस्थुषः // गृहं साधितविद्योऽगात्तन्मित्रं मणिकुंमलः 300 जेम भेरीनां भंभं शब्द अने वृक्षनो च्छायानो योग रोगनो नाश करवामां कहेवा मात्र छ तेसपोनर विधीद्वारथी निषेध करयो छे. / / ३३ए // इत्यादि विचार करता अने तेज वनमां निवास करोने रहेला ते विद्याधरनो मित्र मणिकुंडन विद्यानं साधन करोने घरे आव्यो. // 340 // अदृष्टा सुहृदं कापि, सर्वत्रासौ परिव्रमन् // वने तत्रैव संप्राप, यत्र तिष्टति तत्सखः३४ नपलक्ष्य निजं मित्रं, साश्रुडकू मणिकुंमलम् // सुहृत्कुरूपो वृत्तांतं, बन्नाषे श्रापमोकयोः॥ KXXXXXXXXXX**