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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS गुण ज्ञानदर्शनचारित्ररत्नत्रयविनूषितम् // जीवं सौदर्यतःस्वैरं, वृणुते सिधिकामिनी // 595 ॥*चा .इति श्रुत्वा समं प्राप्तवैराग्यास्ते नरेश्वराः॥न्यस्य राज्ये निजान्पुत्रान्, चादः संयम मुदा॥ // 11 // ____ ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप त्रण रत्नथी मुशोभित एवा जीवने सौदर्यपणाथी सिद्धि पोतानी इच्छाथी वरे छे." // 594 // आवो गुणवर्मा मुनिनों उपदेश सांभली साथेज वैराग्य पामेला ते सत्तर पुत्रोए पोत पोताना पुत्रोने राज्य उपर वेसारीने हर्षयी चारित्र ली . / / 595 // . कोधो निर्मूलितः पश्चान्मानस्तै रपमानितः // मायाछाया परित्यक्ता, लोनदोन्नश्च वारितः ते गुरुणां मूखांनोजादागमं मकरंदवत् // पिवंतो मुंगवनेजुः, परं मालिन्यवर्जिताः // 5 // __पछी ते मुनिओए क्रोधने मूलमाथी उखेडी नाख्यो, मानने अपमान आप्युं, मायारुप छायाने त्यजी दीधी अने लोभना क्षोभने चारी नांख्यो.॥५९६ // भमरो जेम मकरंदन पान करे तेम मलिनतारहित एवा ते मुनिओ गुरुना मुखथी उत्तम एवा आगमनुं पान करता हता. // 597 / / पंचवाणस्य बाणानां, पंचानामपि वारणो // पंचधासमितिस्तेषां,चित्तेषु स्थितिमातनोत् // गुणवर्मगुरुयोग्य, गुणान्वितं निजे पदे // शिदं संस्थापयामास, शासनस्य प्रवर्तकम् एएए कामदेवनां पांच बाणोने वारनारी पांच प्रकारनी समितिए तेओनां चित्तने विषे निवास करयो. // 19 // पछी गुणवर्मा गुरुए शासनना प्रवर्तक एवा गुणवंत योग्य शिष्यने शिक्षण आपी पोताना पदे स्थाप्या. 599 . ते सर्वे रायुरापूर्य, गृहीतानशनास्ततः॥ शुन्नध्यानपरा मृत्वा, ब्रह्मलोकं दिवं ययुः // 600 // चिरं सुखान्यमो नुक्त्वा, देवलोकात्ततच्युताः // समात्पद्य विदेहेषु,सिडिमाप्स्यति सिहिदाः ____ पछी ते सर्वे आयुष्यना पूर्ण अवसरे अनशन लइ शुन्न ध्यानथी मृत्यु पामी ब्रह्मदेवलोक प्रत्ये गया.॥६०० सिद्धिना पामनारा ते मुनियो त्यां देवलोकमां दीर्धकाल सुख भोगवीने पछी त्यांची चवीने महाविदेह क्षेत्रने विषे उत्पन्न थइ मिद्धिपद पामशे. // 601 // Jun Gun Aaradhak Trust 11 //
SR No.036439
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Hathishang
PublisherMaganlal Hathishang
Publication Year1902
Total Pages242
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size300 MB
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