________________ श्रुत्वा मुदार्चनविधिप्रमुख प्रकारान्, पंचात्र तत्फलविलासविचारसारान् / / तानादतः स्तुवतु सप्तदशापि पुण्य, माणिक्यसुंदररुचिं नविका नजध्वम् / / 60 // . हे भविको! आ पूजननी विधि विगेरे भेदोने हर्पी सांभली अने तेमां पांच तेना फलना विचारना सार ने जाणीने ते सत्तर भेदोने आदिथी स्तवो अंने पवित्र एवा माणिक्यसुंदरसूरिने भनो.॥६०२॥ // इति श्री अंचलगन्छेश श्री मणिक्यसूरिविरचिते पूजाधिकारे / गुणवर्मा चरित्रे सादताष्टमांगलिकपूजाफल वर्णनो नाम पंचम सर्गः॥ Jun Gun Aaradhak Trust // अथ प्रशस्तिः // एवं स्नात्रविलोपनां शुकयुगाध्यारोपवासार्चना पुष्पस्रग्वरवर्णसिंचनचयालंकारपुष्पालया // सत्पुष्पप्रकरोऽकतार्चनमयो धूपं च गोतं तया,वाचं नाट्य नयो जयंतु जगतां नायस्यपूजाइमाः एप्रकारे स्नात्र, विलेपन, वस्रारोपण, पुष्प, माला, चूर्ग, अलंकारभूत पूष्पनीमाला, उत्तम पुष्पनो समूह, * अक्षत एमया तथा धुप, गीत, वाद्य अने नाट्य पद ते आ जग प्रभुनी पूजा जयवंती वर्ती॥1॥ आसां कथा व्यरचयञ्च गुरूपदेशान्मा पत्यसुंदरगुरुर्जगतां हिताय // - तान्वाचयंतु मुनयः परिनावयंनु, त नार्चनविधोनुपदेशयंतु // 2 // गुरुना उपदशथी आ सत्तर प्रकारी पूनानी कथा जगन्ना हितने माटे रची छे, माटे मुनिओ ते कथाओने वांचो, भावो अने ते प्रकारे जिनेश्वरने पूजन करवाना विपिनो उपदेश करो. // 2 // XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX PP.AC.Gunratnasuri M.S.