________________ P.P.A. Gunratnasuti MS एवं चिंतयतस्तस्य, श्रृण्वतस्तद्ध्वनिमुदा॥ यामो जगाम यामिन्याः,प्रिया तेनाथ बोधिता॥ बोधयित्वा स तां यावत् ,प्रतिस्म सविस्मयः॥तावनाट्यध्वनि तस्यौ,सा प्रोचेबोधितास्मि किम् ____ आ प्रमाण विचार करतां अने नाट्यशब्दने हर्षथी सांभलतां एक पहोर जतो रह्यो पछी तेणे पोतानी खीने जगाडी // 413 // प्रियाने जगाडीने जेटलामां ते विस्मय सहित पूछे छे तेटलामां नाट्यशब्द बंध भयो पछी स्त्रीये पूछयुं के, “मने तपे केम जगाडी." // 14 // स जगाद श्रुतं किंचित्त्वया सापि पुनर्जगौ // श्रूयते नैरवीशब्दः, श्रृगालानां रवस्तथा 415 स चकार ततो हास्यं, सा प्रोचे किं स्मितं प्रिय // अयुक्तं किं मया प्र.क्तं, येनेत्थं दस्यते वया ___ पतिये का. "ते काइ सांभल्युं ?" स्त्रीये उत्तर आप्यो के भैरवा शब्द अने शीयालोना शब्द संभलायो खीनां आवां वचन सांभली रत्नसिंह इमी पडयो एटले स्वीये कह्यु के, "हे प्रिय! तमे केम दृश्या? योग्य कह्यु छ के, जेथी तमे आप हो छो?" // 416 // ततो नाट्यस्वरूपं स, जगाद दयितां प्रति // सा प्रोचेऽहं न जानामि, प्रमिलायां किमप्यत पाकिमप्यनूत् त्रि तस्यां संप्राप्त निशयां, पुनः शुश्राव स ध्वनिम् ॥तेन शग्बोधिता सातु, न शुश्राव किमी ____ पछी पतिये नाट्यनी वात कही एटले स्वीये कह्यु के, “हुँ नथी जाणती जे रात्रीने विषे शं या | स्त्रो फरी उघी गइ एटले रत्नसिंहे फरी नाट्यशब्द सांभल्यो, तेथी तण स्त्रीने तुरत जगाडी पहली काइ पण सांभल्युं नाहे. // 418 // किं तथेति तया प्रोक्ते, विलद स्वपितिस्म सः // प्रातः प्रबुदः प्रान्नातकार्याणि विदधे सघोर नाट्यस्वरूपं पप्रच. स स्वमित्राणि चैकसः॥ परंप्रोचे न केनापि, स्वल्पनिमा मेमने वृथा शा माटे जगाडो छो?" एम स्वीये कहेवाथी विलक्ष बनेलो कुमार उघी गयो. पनी मन जागी उठेला ते उत्तम वुद्धिवाला कुमारे सवार संबंधी कार्यों करयां. पछो तेणे पोताना नाट्यस्वरूप पुछयूं; परंतु अल्पनिद्रावाला पण कोइये ते कडुं नहि. // 420 // Jun Gun Aaradhak Trust