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________________ PPC Guru MS गुणस एवं निशि निशि श्रुत्वा, तं नाट्यध्वनिमद्भुतम् // मुहुर्मुहुश्च प्रचतं, दारामित्राणि तं जगुः // // 10 // तव ब्रांतिरियं काचिदथवा चित्तवालकः // ततोऽसौ मौनमाधाय स्थितः श्रृण्वत्यपि स्वयम् ___ए प्रमाणे दरेक रात्रीये अद्भुत नाटयशब्द सांभलतो कुमार हमेशां पोतानी स्त्रो अने मित्रोने पूछतो अने तेओ तेने कहेता के, // 421 // " आ तमने काइ भ्रांति अथवा चित्त चपलपणुं थयुं छे." पछी ते कुमार मौन राखीने हमेशां ते नाट्यशब्दने पोतेज सांभलतो. // 422 // एकविशंतिघस्त्रेषु, व्यतीतेषु तथैव सः // नाट्यचिंतातुरो रात्रा, तेजः पटलमैक्षत // 423 // सोद्योते मंदिरे जाते, तेजसा तेन सोग्रतः॥ ददर्श दैवतं दिव्यमालालंकारसुंदरम् // 24 // एज प्रमाणे एकवीस दिवस गया पछो बाबोसमे दिवसे नाव्यविचारमां आतर एवा ते कपारे रात्रीने विषे तेजनो समूह दीठो.॥४२३॥ तेजथी मंदिर देदीप्यमान थयु एटले रत्नसिंहे पोताना आगल दिव्यमालाना अलंकारथी सुंदर एवा कोइ देवताने दोगे. // 424 // विस्मितो रत्नसिंहस्तं, विलोक्य रविन्नास्वरम् // वक्रपद्मं दधौ युक्तं, रात्रावपि विकस्वरम् // कोऽयं कथं कुतः प्राप्त, इति चिंता वितन्वति // तस्मिन्नतौ जगादेति, श्रूयतां सुकृतालय // देवताने जोइ विस्मय पापला रत्नसिंहनुं मुखकमल रात्राने विषे सूर्य या प्रफुल्लित एवा कमल मरस्बु थयु. // 425 // आ कोण छे ? केम श्राव्यो छे ? अने क्यांथो आव्यो छे ? एम कुमार विचार करतो हतो एवामां ते देवताए कह्यं के, "हे पुण्यवंत ! सांपल. // 426 // नाटयस्य चिंता ते चित्ते, वरिवर्तिनिरंतरम् // तत्स्वरूपमहं वक्तुं, प्राप्तोऽस्मि व्यंतरामरः॥ मूलतः शृणु संबंधमस्ति रत्नपुरं पुरम् // शंकरा नूपतिस्तत्रालवल्लोकप्रियंकरः // 458 // त्हारा चित्तमां नाट्यनी चिंता निरंतर रहे छे, तेनुं स्वरूप कहेवा माटे हुं व्यंतर देवता अहिं आव्योछु. // 427 // मूलथो संबंध मापल. रत्नपुर नामर्नु नगर छे, त्या लोकने प्रियकारी एवो शंकर नामनो राजा राज्य करतो हतो. // 428 // KXXXX7232325222262XXXXXXXXXXXXXXXXXX kakkak****KXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Awraca Trust // 10 //
SR No.036439
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Hathishang
PublisherMaganlal Hathishang
Publication Year1902
Total Pages242
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size300 MB
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