________________ PIPAC.GunratnasunMS. विवाहावसरे पित्री, झापिते सति नृपतिः॥ राजाक्रांत शरीरोऽनहलाये च स्वमंत्रिणम् // मम खमं समादाय, गत्वैतेने विवाह्य तीम् // तं रत्नावतोमत्रानयं ज्ञेयविशारद॥ श्ए॥ विवाहने अवसरे रूपचंद्र राजाए खबर आपी, पण ते वखते श्रीचंद्रराजाने शरीरे रोग थयो हतो, तेथी तेणे पोताना प्रधान रत्नाकरने कह्यु. // 291 // हे कार्यचतुर ! म्हारा खड्गने लइ तुं त्यां जा अने ते खड्गनी साथे लग्न करी ते रत्नावतीने अहिं झट लाव." // 292 // तथैवं कृत्वा भूपाझां, से समेतः पुरंः निर्जम् // बह्वमन्यत भूपः स्त्रीरत्नं रत्नवतीमिति // अथ चंज्ञवती ध्यौ, स्वसा पूर्वमपि स्वसा // संपत्नीत्वेन संजातोधुना देतो मां पुनः // रत्नाकर पण तेवीज रीते राजानी आज्ञा प्रमाणे करी पोताना नगरे आव्यो. राजा श्रीचंद्रे पण स्त्रीरत्न रूप रत्नवतीने बहु मान्यथी राखी. // 293 // पछी चंद्रावती विचार करवा लागी के, "प्रथम व्हेन छतां पण हवणां शोक्यपणाने पामेली ते व्हेन फरी पण मने बाले छे. // 294 // प्रागेवे तत्करिष्येऽहं,विरक्तःस्यान्नॅपो यतः॥ध्यात्वेति "तं गौ कोले, मंत्रिश्लाघाविधायिनम्॥ अतिश्लाघा ने कस्यापि, प्राणनाथ विधीयते॥ मंत्रिगायत्कृतं मार्गे, तत्सर्व "मे जैगौ स्वसा॥ प्रथमज हुँ ते, करीश के, जेथी राजा विरक्त थाय." आ प्रमाणे विचार करी ते चंद्रावतीए अवसरे * | मंत्रीनां वखाण करनार राजाने कह्यु. // 295 // “हे प्राणनाथ ! कोइनां बहु वखाण न करवां. कारण रस्तामा मंत्रीए जे कयुं छे ते सर्व म्हारी व्हेने मने कह्यं छे. / / 296 // श्रुवेति कुपितो नूपस्त्यक्त्वा रत्नवतीगृहम्॥जिघांसुमैत्रिणं 'कंचिउपायं स व्यचिंतयत् // कुन्नं स्वर्णमयं नृत्वा, नश्मना दौमवेष्टितम्॥ कृत्वा दत्वा स्वयं मुश, बनाये मंत्रिणं प्रति प्रियानां एवां वचन सांभली कोप पामेला राजाए रत्नवतीना घरने त्यजी दीधुं. वली मंत्रीने मारी नांख| वानी इच्छावलो ते काइ उपायने शोधवा लाग्यो. // 297 // पछी राजाए सुवर्णना कुंभमां भश्म भरी उपर * शमा बम बाधा अन पात साका मारान पछी मत्रान कयु. / / 298 / / / Jun Gun Aaradhak Trust