________________ रित्र, PPA Guarasut MS KXXXXKXXXXXXX वीणां विदार्य तं वीक्ष्य, विस्मिते सकले जने // गंधर्वमाला वीणां स्वां, तस्य दस्ते समर्पयत्च तुंबर्नारदो वासौ, पुंरूपा वा सरस्वती // तां वीणां वादयत्यस्मिन्न कश्चित्ते व्यतर्कयत् // पछो वीणाने चीरी अने ते कांकराने जोइ सर्वे माणसो विस्मय पाम्या एटले गंधर्वमालाए पोतानी वीणा. तेना हाथमा आपी. // 215 ॥ए गीतप्रिय वीणा वगाडवा लाग्यो एटने " आ तुंवरु छे ? नारद ने ? के पुरुषरूप धारण करनारो सरस्वती पोते छे." एम कोणे चित्तमां तर्क नहोतो करयो ? अर्थात् सौ तर्क करवा लाग्या हता. // 216 // * गीते च गोते जैनेये, वय॑नाषामनोहरे // गंधर्वमालया साकं, रंजिता सर्वखेचराः // 17 // अचैतन्यं तथा तेषां, जज्ञे गोतं च शृण्वंताम् // मित्रेण हारयामास, यथासौ तधिनूषणम् // वली वर्ण्यनापाथी मनोहर एवा जिनराजनां गीतगान करयां, तेथी गंधर्वमाला सहित सर्वे विद्याधरों प्रसन्न थया. // 217 // वली गोतने सांभलता एवा ते विद्याधरो एवा मोह पामी गया के, जेथौ गीतप्रिये पो ताना मित्र पासे तेओनां घरेणां हरण कराव्यां. // 218 // A कस्यचित्कुंभलं कर्णाद्भुजात्कस्यचनांगदम् // मित्रेण कौतुकाऊहे, करात्तस्याश्च कंकणाम् // * गीते मुक्ते ततस्तेन, सर्वे जाताः सचेतनाः॥ रिक्तमान्नरणैरंगं, दृष्ट्वान्योऽन्यं विलोकयन् // मित्रे कौतुकने लोधे कोइना कानथो कुंडल, कोइना हाथथी बाजु अने ते गंधर्वमालाना हाथथी कंकण | हरण करी लीधुं. // 219 / / पछी कुमारे गीत बंध करयुं एटले सर्वे सचेतन थया. पछो तेओ आभूषण पोतानां अंगने न जोइ. परस्पर एक वीना सामु जोवा लाग्या. // 220 // स्मित्वा तभूषणे दत्ते, विचेतन्योक्तिपूर्वकम् // गंधर्वमाला तत्कंठे, वरमालां मुदाविपत् // तयोविवाहे संजाते, रूपलावण्यतुल्ययोः॥ सदृशं सदृशेनैव, नातीति जनता जगुः 122 पछी हसीने तेओने मोह पामवानी वात कहेवापूर्वक आभूषणो पाछां आप्यां एटले गंधर्वमालाए हर्पयो Jun Gun A chat Trust // 9 //