________________ चरित्र. PP.AC.Gunratnasuri M.S. गयेला माणसो ते वखते जलनेज रत्नपणुं कहेवा लाग्या. कडुं छे के. // 87 // पृथ्वीमांजल, अन्न अने सद्वचन ए त्रण रत्न छे, परंतु मूढ पुरुषोए पाषाणना ककडाने रत्न एवू नाम आप्यु छे. // 88 // ते वखते मेघनाद विचार करवा लाग्यो के, “हवणां हूं विद्यमान छतां पण मेघ वरसाद न वरसावे तो पछी म्हारु मेघनाद एवु नाम निरर्थक शामाटे रहे, जोईये ? " 89 // राजा आम विचार करतो हतो, एवामां सेनानी उपर गाढ एवा मेये दृष्टि करी; तेथी लोको हर्षथी ते राजानेज वखाणवा लाग्या. // 90 // पछी ए मेघनाद राजाए शत्रुन जाता पंथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जेलमनं झुन्नाषितम् // महःपाषाणखंडेष, रत्नसंझानिधीयताजा मेघनादस्तदा ध्यौ, मयि सत्यपि संप्रति // मेघोऽपि न जलं देद्यात, कथं नाम निरर्थकम् // इति चिंतयति मापे,सैन्योपरि घेनो धनः॥ वृष्टि चक्रे दालोको, नेपमेव शशंस तैमाए॥ रिपुं जित्वा सुखनवे, गत्वासौ नगरं निजम् // पछानिनं साधुचं तत्र संमागतम्॥१॥ A अटव्यां मम सैन्यस्योपरिष्टादेव वारिदः।। ष्टिं चकार को हेरचें चित्रमिदं महताए। मुनिःप्रोचे नवान् पूर्वनवेऽत्र हस्तिनापुरे // |ष्ठिनो धनदस्य, दत्तनामा सुतोऽजनि // "विहिता तेन सामग्री, जिनस्य मात्र हेतवे॥ कालेंबधौ स मृत्वान्नस्त्वमनिंदनृपांगजः॥एव अंतरेऽत्रं नृपोऽवादीकुंत्र तहस्तिनापुरम् // यतः योनिधौ गत्या, मृत्वा चौहमिहानवम् // अने मुखथी पोताना नगर प्रत्ये जईने त्यां आवेला ज्ञानि मनिचंद्र गुरुने पूछयं के. // 91 // " अरण्यमा म्हारा सैन्यनी उपर ज मेघे वृष्टि करी, तेनुं कारण शुं ? ए मने म्होर्नु आश्चर्य छे. // 92 // मुनिये कह्यु. "तुं पूर्व भवन विषे आ भरतक्षेत्रने विपे हस्तिनापुरमा धनदत्त शेठनो दत्त नामनो पुत्र थयो हतो. // 93 // ते दत्ते श्री जिनराजना स्नात्रने माटे सामग्री करी हती. पछी ते दत्त अवसरे समद्रमा बडी मरीने तं पोते आनंद राजानां पुत्र थयो छे / / 94 / / आ वखते वचे राजा बोली उठयो के. " ते हस्तिनापुर क्या छ ? के ज्यांथी हु समुद्रमा जई Jun Gun Aaradhak Trust // 22 //