________________ P.P.AC.Gunratnasus M.S. मृत्यु पामीने आहे उत्पन्न थयो छु." // 95 // मुनिये को "अहिं एक नामथी बहु नगरीयो छे,माटे ते हस्तिनापुर जूदुं अने कुरुदेशमां पण जूदं." // 96 // राजाए " आपे प्रस्तुत कयु." एम कर्दा एटले मुनिये कह्यु के," हे भू पाल! विश्वपति एवा जिनेश्वरनी पूजानुं फल सांभल. // 97 // पूजाना प्रभावथी राज्य तो स्वाभाविक पण Kआवी मले छे, पण स्नात्र पूजाना विशेषपणाथी मेघ त्हारा वश्य थयो.॥९८॥ चारे तरफ दुकालनी वात चा लती हती एवामां त्हारो जन्म थयो एटले मेघे वृष्टि करी, तेथी तुं मेघनाद एवा नामथी प्रसिद्ध थयो छे. // 19 // मुनि गौ वहुन्यत्र, नगराण्येकनामतः // हस्तिनापुरमन्यनदेन्यच कुरुमंडले ॥ए६ // नक्तं प्रस्तुतमित्युक्ते, नृपेण मुनिपुंगवः // जगौ फैलं जगन्नाथपूजायाः अ॒णु नूपते // 9 // | पूजाप्रत्नावतो राज्यं, स्वन्नावादपि जायते // स्नात्रपूजाविशेषेण जलदस्ते वशंवदः ॥ए॥ तवावतारे उनिहवा यामपि सर्वतः॥ वृष्टिं चक्रे घनस्तस्मान्मेघनादाख्यया वान्॥एण त्वयि पालयति कोणी, उनि न नवेल्क्वंचित् // अंटव्यां तु तदा वृष्टिवितेने वैनदेवतैः॥ | ऐकोपि पूजा सफला, बहोनां कि निगद्यते // विंशतिस्थानकैरहन्ने केनापि च जायते // 11 // सर्वत्र शस्यते नावः, पुण्यकर्मणि पते // नावेनै घृतेनेव लोज्यं तत्सफैलं नवेत्॥१०॥ मेघनाद इति श्रूत्वा, स्मृत्वा पूर्वनवं निजम् // मुनि नत्वा पुनः प्रोचे,"विशेषाईर्ममादिश॥ हे राजन् ! तुं पृथ्वीनुं पालन करीश त्यां सुधी क्यारे पण दुर्भिक्ष थशे नहि. वळी ते वखते अरण्यमां वनदेवताए वृष्टि करी हती. // 100 // एक एवीय पण जिनपूजा फलवाली छे, तो पछी बहु पूजानी तो वातज शी करवी. वली एक वखते पण विशस्थानकथी तीर्थकर थायछे. // 101 // हे भूपाल ! सर्व स्थानके पुण्य कार्यमां भाव वखणाय छेवली जेम घीथी भोजन सफल थाय छे तेम भावीज ते पुण्यकार्य सफल थाय छे." // 102 // मेघनाद ए प्रमाणे मुनिनां वचन सांभली तेमज पोताना पूर्व भवने संभारी अने मुनिने नमस्कार करीने फरी /