________________ चरित्र गण // 7 // PIP.AC.GunratnasuriM.S. *XXXXXXXXXXXXXX तंत्र केपि तुरंगस्तं निनाय कैणमात्रतः॥ न वृक्षा न फैलं नावं, केवलं यत्र तु स्यलम् // * स्वयमेवं स्थिरीनूताऽत्तीर्य तुरगादसौ // जलं गवेषयामास, र्तृषाशुष्कोष्टपल्लवः // 16 // ___ अश्व ते कुमारने क्षणमात्रमा क्याइ पण लइ गयो के, ज्यां झाड फल के जल कांइ नहोतुं, पण फक्त रणज हतुं. // 161 // पछी पोतानी मेलेज उभा रहेला ते अश्व उपरथी उतरीने तरसाथी सुकाइ गयेला होठ रूप पल्लववालो ते राजकुमार पाणीनी शोध करवा लाग्यो. // 162 / / हैष्ट्वा जटाधरं कंचित्, कमंडलुकरं पुरः॥स प्राह सादरं स्वधगिरा कास्ति सरोवरम् // 163 // - आगति वचः प्रोच्य, तं नीत्वा क्वापि पटवले॥ तापसः पाययामास, जैलं पोयुषमंजुलम् // ___आगल जतां हाथमां कमंडलने धारण करनारा कोइ जटाधर तापसने जोइ लक्ष्मीधर कुमारे आदरस हित स्वच्छ वाणीथी का के, “क्यांइ सरोवर छे ?" / / 163 // तापसे "चाल." एम वचन कही तेने कोइ > सरोवर पासे लइ जइ अमृतसमान मनोहर पाणी पायु. // 164 // स्थूलस्थले त्वयागम्य मंत्रास्मीति वदन्नथ // जगाम तापसकादि', स चचाल हेयं प्रति // अप्राप्य तुरगं कापि, वलितःसरसीं प्रति // तामप्यदृष्ट्वा से प्राप, स्यलं तापसवेदितम् 166 पछी " त्हारे म्होटा पर्वत आवq. हुं त्यां छु." एम कही तापस क्याइ गयो अने राजकुमार घोडा तरफ चाल्यो. // 165 // कुमार त्यां कोइ ठेकाणे पण घोडाने न पामीने फरी सरोवर तरफ बल्यो, परंतु सरोवर पण . देखवाथी तापसे कहेला पर्वत आव्यो. // 166 // स्फूर्जऊटाकलापं तं, नत्वा तापसमग्रतः॥ निषणः सैष पंप्रच, दृष्टा यूयं सरोवरे // 16 // ___ देदोप्यमान जटाना समूहवाला ते तापसने नमस्कार करीने तेनी आगल वेठेला ते कुमारे पूछयु के, “सरोवरने विपे में तेमने जोया छे. // 167 // Anas Jun Gun Aaradhak Trust