________________ P.P.A. Gunratnasuti MS जिनपजाप्रन्नावण, प्राज्यं राज्यमिदं तव // पुष्पप्रकरतः पुष्पप्रकरस्ते तदान्नवत् // 317 // भपः पूर्वनवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽन्नवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // 318 // " ए हेमवर्णना जोवरुप तने जिनपूजाना प्रभावथी आ समृद्धिवंत राज्य प्राप्त थयुं छे. वली ते जिनेश्वरनी आगल पुष्पनो प्रकर करयो हतो, तेथो ते वखते त्हारी आगल पण पुष्पनो प्रकर थयो हतो. // 317 / / सुमति राजा पोतानो पूर्वभव सांभली ते वखते जातिस्मरणज्ञान पाम्यो, तेथी तेणे मुनिनी पासे विशेष अरिहंतनो धर्म आदरयो. // 318 // मनिं नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ गृहीत्वा संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽनवत३१ए / चिरं सुखान्य सौ नुक्तवा, देवलोकात्ततश्चयुतः // हादशो बहुबुद्धिस्ते, तनयो नूपतेऽन्नवत् // पली मनिने नमस्कार करी घरे जइ पोताना पुत्रने राज्य आपी अने अंते चारित्र लइ ते सुमति सौधर्म देवलोकने विषे देवता थयो. // 31 // // ( श्री नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के, " हे भूपति ! ए मति त्यां बहुकाल सुख भोगवी अने पछी देवलोकथी चवीने त्हारो बारमो बहु बुद्धि नामनो पुत्र थयो छे. वस्त्रादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्य-माणिक्यसुंदररूचिर्नृपतेः पुरस्तात् // नक्त्वा विशेषसहितानि तदादतादि पूजाफलानि गदितुं स पुनः प्रवृतः // 31 // पवित्र एवा श्री माणिक्यसुंदरसूरि राजानी आगल विशेष सहित वस्त्रादिचारना पूजन फलने कहीने फरी नमन ते वखते अक्षत विगेरेना पूजनफलने कहेवा लाग्या. // 321 // श्री अंचलगजेश श्री माणिक्यसूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्माचरित्रे महाध्वजान्नरणारोपपुष्पगृहपुष्पप्रकरपूजाफल वर्णनो नाम चतुर्थः सर्गः Jun Gun Aaradha Trust