________________ गुण P.P.A. Gunratnasuti MS धनदत्त देवताए ते वखते साडी एकविश कान्यो इंद्रना नामथी करयां अने अर्ध काव्य पोतानी पूजाने प्रसिद्ध Red करनारुं करयुं. // 15 // हे मंत्री ! पछी देवताओ स्वर्गे गये छते ते धनदत्त देवता पण दीर्घकाल त्यां सुख // 16 // भोगवीने स्वर्गथी चवी आहं हुं पोते थयो ढु. // 216 // आजथी श्री पार्श्वनाथ प्रभुने प्रणाम करथा विना हुँ भोजन करीश नहि, माटे आहे समिपे नवीन हस्तिनापुर स्थापो."॥ 217 // राजानां एवां वचन सांभली सर्व लोक बहु हर्षवंत थया. गुणवर्मा राजा पण नवीन हस्तिनापुरमां निवास करीने रह्यो. // 218 // एक दिवस एकविंशतिकाव्यानि, सार्शनि देरिनामतः // काव्याईचं तदाकार्षीत् , र्खपूजाख्यापकं सुरः॥ तंतःस्वर्ग गतेस्वार्गलोके सोऽप्यमरश्चिरम् // सुखं नुक्त्वा दिवेश्चयुत्वा, मंत्रि–हमिहानवम् // अप्रणम्य प्रस्तुं पार्श्व, नोजनं नै करिष्यते॥ स्थाप्यतां तदिहादूरे, नैवीनं हस्तिनापुरम्॥२१॥ श्रत्वेति' सकले लोके, परमानंदमेऽरे // गणवर्मा नपस्तस्थौ, नवीने हस्तिनापुरे // 21 // सोऽन्यदा निशिनिज्ञणः, कैस्याश्चिर्करुणस्वरम् // श्रुत्वा र्गछन् पुरोऽदीउँदैतीसुदती वने। कथमेकाकिनी बाले, का त्वं सुंदरि रोदिषि॥श्रुत्वे तिरुदितं मुक्त्वा, मुंदितंसोमनो दधौ 220 अन्यत्याय संलका सा, बन्नाषे नॅपतिं प्रतिा खेटचैत्यै त्वया दृष्टा, रत्नमालान्निधास्म्यहम् // सा गंता स्वपितुः, 'सिंहनूपतेः सिहलेशितुः॥सदने स्वानुरागं च, सखीनिस्तमैयझपम्श्श् / रात्रीये उघी गयेला ते गुणवर्मा राजा कोई स्त्रीना करुण शब्द सांभली ते तरफ चाल्यो तो तेणे आगळ जतां वनमा रोती एवी कोई स्त्रीने दीठी. // 219 // " हे वाला ! तुं कोण छे ? हे सुंदरी ! तुं एकली केम रुवे छे ?" एवां वचन सांभली रोवु मूकी दई ते स्त्री हर्ष पामी. // 220 // पछी उठीने लज्जावंत एवी ते स्वीये राजाने कडं के, " विद्याधरना चैत्यने विषे तमे दीठी हती ते हुँ रत्नमाला नामनी स्त्री छ. / / 221 // ते हुं म्हारा पिता सिंहलाधिपति सिंह राजाना घरने विषे जई, अने त्यां में तमारा उपरनी म्हारी प्रीति सखीयो पासे म्हारा ks पिताने केवरावी. // 22 // म्हारं वचन पिताए न मान्यं पटले अत्यंत दःखी थयेली हुँ मूति, एवामां शय्या- // 16 // Jun Gun Aaradhak Trust