________________ 3 P.PA. Gunratnasuti MS गुणते वखते तेज योगी फरी जयंतीना घरे आव्यो अने तेणे कयु के, "म्हारा चूर्णथी हारो मनोरथ सिद्ध थयो?" // 269 // निसासा मूकती एवी जयंतीये कयुं. "ते तो दैवे अवलुं करयु. कारण तमारुं चूर्ण शौक्यना पुत्रने // 3 // विषे व्यर्थज थयु.॥ 270 // आंगलीनी वचमा रहेला एवाय पण ते चूर्णथी म्हारो पुत्र तुरत गांडो थइ गयो. हाय हाय! दैवथी हुँ ठगाइ छु. // 271 // जो राजा धनश्रीना वणिक् पुत्रने पोतानुं राज्य आपे छे तो मने दाझा उपर फोल्लो थयो जाणवो. // 272 / / माटे मने कांइक आपो के जेनाथी निश्चे तेना अंगो रही जाय. कातेदा योगी स एवार्गाऊँयंत्या मंदिरं पुनः // स "प्रोचे मेम चूर्णेन, तैव "सिझो मनोरथः // निश्वासान् मुंचती सोचें, देवेने तमन्यथा // सपत्नीनंदने जातं, तच्चूर्णं व्यर्थमेवे ते // अंगुल्यंतरगेणापि, तेन चूर्णेन मत्सुतः॥ तत्कणं हिलो जातो, हाँ देवेनोस्मि वैचितौ // स्वराज्यं वणिजे तस्याः, पुत्राय यदि पतिः॥ ददाति स्फोटकस्तर्हि, देग्धोपरि ममानवत् // तैत्किंचिद्दीयतां येन, तिष्टंत्यंगानि तस्य हि॥ वरं राज्यमिदं शून्यं,वणिकपुत्रे तु 'नोचितम्॥ दत्वा चूर्ण जगौ योगी, त्वया प्यमिदं जले॥अनेन लैंग्नमात्रेण, स्थास्यंत्यंगानि तस्य हि // इत्यक्त्वा स ययौ योगी,सातच्ग कथंचन॥राज्याभिषेककलशोदके चिके इष्टधोः॥७॥ मंडले मांडलिकानां, मिलिते च महोत्सव। वर्तमाने सुतस्तस्या,ग्रहिलो समागतः॥६॥ A यंत्र क्षिप्तं तेया चूर्ण, तमेव कलशं रयात् // मामाकुर्वति लोके सौ, निजैशीर्षे व्यलोठयत्॥ रण आ राज्य राजा विना शून्य रहे ते सारु, पण वणिक पुत्रने आपे ते योग्य नथी." // 273 // योगीये चूर्ण आपीने कड्यु. “हारे आ चूर्ण अभिशेकना कलशमां नांख. ए चूर्ण तेना शरीरे अडशे एटले निश्चे तेनां अंगो रही जशे." // 274 // एम कहीने ते योगी गयो एटले दुष्ट बुद्धिवाली जयंतोये ते चूर्ण कोइपण रीते राज्याभिषेक करवाना कलशना जलमां नांख्यु. // 275 // मांडलीक राजाओगें मंडल एकळु थयुं अने महोत्सव चालुं थयो एवामां जयंतीनो ते गांडो पुत्र पद्म त्यां आव्यो.॥२७६॥ जयंतीये जे Jun Gun Aaradhak Trust , RomamRNIRANImam tammnate