________________ PPA Guntarasut MS पोऽपिसोऽपि लोकोऽपि, मुंदिता स्वगृहं ययुः॥ विशेषान्मंत्रिगो गेहं. वनूव सुमहोत्सवः॥ संप्रेाज्यराज्यकार्याणि,कुर्वन् शिशुरैपि स्वयम्॥ वृहन्योऽपि हि मान्योऽनलेन्य ईव सन्मणिः॥ पछी राजा अने सर्वे लोको पण हर्पित थइने पोत पोताना बो गया. विशेष मंत्राना घरने विषे उत्तम उत्सव थवा लाग्या. // 275 // रत्नाकर पोते बालक छतां उत्तम एवां राज्य कार्यने करतो छतो पर्वतो करतां * जेम उत्तम मणि मान्यवंत होय तेम वृद्ध पुरुषा करतां वधारे मान्यवंत थयो. // 276 // अन्यदा शूरनूपालः कालवत्कुपितो नृशम् // आगचंतत्पुरं "राझे, झापितश्चतुरैश्चरैः॥ // रोजा मंत्रिणंमाकार्य, तत्स्वरूपं न्यवेदयत्॥ स प्रोवाच स्थिरैन्नीयं, स्थिराणां स्युर्यंत श्रियः॥ कोइ वखते कालनी पेठे बहु कोप पामेलो शूर राजा श्रीपुर उपर चडी आवतो हतो ते बात चाकर चर लोकोए श्रीचंद्र राजाने कही. // 277 / / राजाए प्रधानने (रत्नाकरने ) बोलावोने ते वात कही एटले प्रधाने कर्तुं के, “आप धीरज राखो. कारण के, धारजथो विजय होय छे." // 278 // इत्युक्त्वा सऊयन् वप्रं, प्रचन्नं स नरैर्निजै // शत्रोरुत्तीरकस्थाने, निधानानि तितो न्यधात् // समेते शूरनपाले, ससैन्ये परितःस्थिते // लिर्खित्वा से स्वयं लेख, प्रेषयामास तत्कृते॥ एम कहीने ते प्रधाने पोताना माणसो पासे किल्लाने गुप्त रोते सज्ज करावीने शत्रुने उत्तरवाने ठेकाणे * पृथ्वीमां धन डटावी दीधुं. // 279 // पछी शूरराजा आव्यो अने सैन्यसहित चारे तरफ पडाव करीने र ह्यो एटले रत्नाकरे पोते एक पत्र लखीने शूरराजा उपर मोकल्यो // 280 // लेखोऽयं च स्वयं वाच्य, इति वाच्यं त्वया मुखात्॥शियित्वेत्यसो 'विप्रं, स्वं प्रैषीत् शूरनूलुजे॥ लेखं से वाचयामास, स्ययमेवेति मातुलः // मदीयोऽस्ति नवन्मंत्रो, तेने संबंधैवानहम // वली " आ पत्र तमारे पोताने वांचवो. एम हारे मोढेथीं कहेवू." एम ते रत्नाकर पोताना ब्राह्मणने शिखामण आपो शूरराजा पासे मोकल्यो. // 281 // पछी ते शूरराजा पोतेज आ प्रमाणे पत्रने पांचवा लाग्यो के, “तमारो प्रधान म्हारो मामो थाय छे, तेथो तेमनो साथे हुं संबंध धराबुछु. // 282 / / TXXXIKKIKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXYYYY Jun Gun Aaradhak Trust