________________ PPA Gunratnasuti MS गुण वनं पुनति ते तातपादाः संप्रति नूपते // सुरासुरकृते स्वर्णकमले हंसवस्थिताः // 578 // चरित्र. श्रुत्वेति नूपतिःप्रोतमानसः सपरिचदः // तत्र गत्वा मुनि नत्वा, पुरतः सन्निविष्टवान् // 575 " हे भपति ! हवणां आपना पिताना चरणो उपवनने पवित्र करे छे, अने देव तथा दानवोए रचेला सुवर्ण कमलमां हंसनी पेठे ते पोते विराजीत थयेला छे. // 578 // बागवानना आवां वचन सांभली प्रसन्न थयेलो ना IN राजा परिवार सहित त्यां गयो अने मुनिने नमस्कार करी तेमनी पासे वेठो. // 579 // केवली देशना चके, नोनव्या नववारिधौ // चिंतामणिसमं मृर्त्यः, न पुनः प्राप्यते जनैः // तत्रापि जैनधर्मोऽयं, जैनधर्मेऽपि संयमः॥ संयमेनैव सा स्याच्च, प्राणिनां सिझिकामिनी // परी केवलीये देशना आपी के, हे भव्यजनो! आ संसार समुद्रमां चिंतामणिरत्नसमान मनुष्य जन्मने मासो वारंवार पामता नथी. // 580 // तेमां पण आ जैन धर्म, ले धर्मने विषे पण संयम मलयो दुष्कर छे. संयममां पण प्राणीओने मिद्धिवधु मेलववी दुष्कर ले." // 581 // इति श्रुत्वा मुनि नत्वा, गृहं गत्वा नरेश्वरः॥ पुत्र प्रथमराजाख्यं, निजराज्ये न्यवीविशत् // प्रथक् प्रथक् स्वदेशेषु, पुत्रानिवेश्य सः स्वयम् // नरवर्मामुनेः पार्थे, संयममाददे मुदा // 583 केवलीनो आवो उपदेश सांभली गुणवर्मा राजार मुनिने नमस्कार करी घरे जइ पोताना म्होटा पुत्र प्रथम राज नामनाने राज्यासन उपर बेसारयो. // 572 // वली वीजा पुत्रोने पोताना जूदा जूदा देशने विषे राज्य मोपी पोते नरवर्मा मुनिनी पासे हर्षथी चारित्र लीधुं. // 573 // दधानो विविधां शिकां, चतुर्दशपूर्वन्नृत् // प्राप्य सूरिपदं पृथ्व्यां, व्याहरत्सपरिबदः॥५८४॥ गुणवर्मसुतास्ते च, राज्येषु स्वेषु संस्थित्मः॥ राज्यानि पालयामातुरन्योऽन्यं प्रीतिशालिनः / वे प्रकारनी शिक्षाने धारण करता अने चोद पूर्वी थयेला ते गुणवर्मा मुनि त्रिपद पामीने परिवार महित पृथ्वी उपर वि.ार करवा लाग्या. // 584 // पोत पातानां राज्यने विष रहेला ते गुणवर्माना पुत्रो परस्पर प्रीतीवंत थइ राज्योन पालवा लाग्या.।। 585 // // 117 // Jun Gun Aaradhak Trust KXXXXXXXXX