________________ P.P.AGunnast MS प्रासादे स्थापयित्वा तेन्मूर्तिनित्यं नरेश्वरः // पुप्पचंदनकपूर':, पूजयामास सादरम् 185 // तमप्रणम्य लोकोऽपि,न चके कोऽपिन्नोजनम्॥"वैरं संस्मार्य चने,रॉकसःकुपितःपुनः॥ ___पछी राजाए ते राक्षसनी मूर्तिने मंदिरमा स्थापन करीने निरंतर पुष्प चंदन कपूर विगेरेथी आदर सहित पूजन करवानो आरंभ करयो. // 185 // लोक पण ते मूर्तिने प्रणाम करथा विना कोइ पण भोजन करतुं नहोतुं, तोपण ते राक्षस मनमा पूर्वना वैरने संभारी फरी कोप पाम्यो. // 186 // प्रत्यक्षीनूय से प्रोचे, रे रेनश्यत ऊनाः॥ अंलं "मेनवतां नक्त्या, "पैरदं पुःपायितः॥ युष्मान् धैक्ष्याम्यहं सर्वानियुचानेऽथराक्षसे। पतिःप्रांजलीनूय, नयस्तं नक्तिना जगौ॥ तेथी ते राक्षस प्रत्यक्ष थइ कहेवा लाग्यो के, "अरे दुर्जनो! नाशो जाओ. म्हारे तमारी भक्तिनुं कांइ जरुर नथी के, जे तमोए मने तरवू पायुं छे. // 187 // पछी “हुं तमने सर्वेने वाली नाखोश." एम राक्षसे कह्यु एटले भक्तिवंत एवा राजाए फरी हाथजोडी तेने कह्यु. // 188 // नपायो विद्यते कोऽपि, येन त्वं खलु तुष्यसि // स प्राह श्रूयतां पोप, यदि सिध्यति तत्कुरु // कुसुमैः पंचवर्णान्नैस्त्रिसंध्यं चेन्ममार्चनम् // क्रियते संकलैलोकैस्तैदा मुंचामि नान्यथा॥१९॥ कोइ पण उपाय होय के जेणे करीने तुं निश्चे संतोष पामे." राक्षसे का. "हे पापी! सांभल. जो सिद्ध थाय तो ते कहे. // 189 // जो सर्वे लोको त्रणकाल पांच वर्णनां पुष्पथी म्हारे पूजन करे तो हुं मूकीश. नहि तो बाली नाखीश." // 190 // सामान्यतोऽपि नो पुष्पं, पायो देशेऽत्र दृश्यते ॥पंचवर्णानि लैन्यंते. केसुमानि ततःकृतः॥ कुंज्ञदेश इति झात्वा, सर्वे नष्टास्ततो जनाः॥ जनाधिपोऽहं संजातो, वैराँग्यात्तापैसवती १एश् - आ देशमा घणुं करीने साधारण पुष्प पण देखातुं नथी, तो पछी पांच वर्णनां पुष्प तो क्यांधीज मले? // 191 // आवो राक्षसनो तुच्छ हुकम जाणीने पछी सर्वे माणसो नासी गया अने राजा एवो हुँ पोते वैरा - Jun Gun Aaradhakrust