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________________ जा PPA Gunatnesut MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX पृष्ट्वा पौराणिकान् सर्वान् , प्रायश्चितकृते नृपः॥ पुष्णं पाययामास, संक्रोधस्तं पुरोधसम्॥ चरित्र मृत्वा पुरोहितो जातो, रौशदो नाम रौकसः॥ शिलातलं विकृत्यास्थात् , वेर स्मृत्वा पुरोपरि पछी क्रोध करता एवा राजाए सर्वे पौराणिकोने पूछीने प्रायश्चितने माटे ते गोरने उनु तर, पायु.॥१७६ / गोर मृत्यु पामीने रौद्राक्ष नामनो राक्षस थयो. ते पूर्व वैर संभारीने नगर उपर शिलातल विकुर्वा उभो रह्यो.१७७ तेत् दृष्ट्वा व्याकुलो लोको, नूपोऽपि स्नानपूर्वकम् // बलिं चके बनाये च बहकोश इदं वचः येदोवा राक्षसोऽन्यो वा,यः कोऽप्यस्ति प्रकोपितः। वयं तदीप्सितं देनःप्रत्यकीनूय याच्यताम् | ते जोइ लोको व्याकुल थया. राजाए पण स्नान करी बलीदान करयुं अने हाथजोडी आ प्रमाणे वचन कहूं. // 178 // " यक्ष, राक्षस के बीजो जे कोइपण कोप पाम्यो होय तेने अमे इच्छित वस्तु आपीथु, माटे है ते प्रत्यक्ष थइ अमारी पासे मागो.॥ 179 // स्वं झापयित्वा से 'प्रोचे, रेपोपपरायणाः॥ दणांचूर्णयिष्यामि, पूर्णयिष्याम्यहं रुषम् // कृपां कुरु हिंतोतस्त्वमपराई कर्मस्व नः॥ इत्यादिवचनैर्लोकः, संनूपोऽमयञ्च तेम् // 11 // ___ पछी ते रौद्राक्ष राक्षस पोताने जणावी कहेवा लाग्यो के, " अरे पापीयो! हुं तमोने क्षणमात्रमा चूर्ण करी नाखीश अने म्हारा क्रोधने पूर्ण करीश. // 180 // " हे तात! तमे निश्चे कृपा करो अने अमारा अपराधनी क्षमा करो." इत्यादि वचनथी राजा सहित लोको तेने खमाववा लाग्या. // 181 // किंचित्प्रशांतकोपोऽथे, बन्नाषे कसो नृपम् // तदा मुँचाम्यहं चेन्मी, प्रोसादस्थ त्वमसि स्वीकृते वैचने तस्य, लोकैःसाकं महीन्नुजां // शिली विदूरयामास, नगराशंकसःदयात् // __ पछी शांत थयेला कोपवाला राक्षसे राजाने कयुं. ज्यारे तुं मने मंदिरमा स्थापन करीने पूजीश त्यारे हुँ तने मूर्काश." // 182 // पछी लोको सहित गजाए तेनुं वचन कबूल करयुं एटले राक्षसे नगर उपरथी तुरत शिलाने दूर करी.॥ 183 // GI Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036439
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Hathishang
PublisherMaganlal Hathishang
Publication Year1902
Total Pages242
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size300 MB
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