SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुराण PF.AC.Gunratnasuri M.S. aslठमो सिंधु थयो नथी. वली पोताना स्थानथी एक पगलं पण नाह चालनारा एवा विंध्याचल पर्वतने मदनी पालथी पालन करेला यशवाला अने लक्ष्मीने आलंबन आपनारा अनेक हाथीओ आवी मले छे. // 37 // तमे सर्वे हिनकलावाला छो, तेथी लोकमां निरमल एवंय पण तमारुं कुल ध्वजा विनाना प्रासादनी पेठे पुण्य विना नथी शोभतुं. // 38 // दान, शील, तप, भाव, सम्यक्त्व, जिनपूजन, ध्यान अने मामायिक एथी काईक पुण्य कराय छे. // 39 // . वली मुनिये अत्यंत विस्तारवंत ते पूजानो विचार कह्यो एटले ते कुमारोए कह्यु के, “हे मुनि ! अमे अत्यंत अमारे स्वाधिन एवी एक एवी पूजा करीडूं."॥४०॥ पछी “शी रीते जिनपूजन करवू? कलं वो विमलं लोके, सेकला विकलाकलाः // प्रसाद च निःकेतुर्विना पुण्यं ने राजते 30 | दानं शीलं तपोनावः,सम्यक्त्वं जिनप्रजनमाध्यानं सामायिकवापि,"किंचित्पुण्यविधीयते 'तेप्रोचुस्तहिचारे चे, साधुनोक्ते सुविस्तरे। संस्वसाध्यां विधास्यामः,पूजामेको वयं मुने // अंथ केन प्रकारेण, क्रियते जिनपूजनम् // इति पृष्टो मुनि श्रेष्टःस्पृष्टमेवैमन्नाषत // 41 // | स्नात्रं विलेपनं वस्त्रयुगलारोपणं तां // वासपुष्पमाल्यवर्णचूर्णानामधिरोपणम् // 2 // महाध्वजविनूषाणां रोपणं पुष्पवेश्म च // पुष्पाणां प्रकरश्चौग्रे, पुरतो मंगलाष्टकम् // 3 // धूपस्योरपणंगीत, नृत्यं वाद्यं मनोहरम् // एते सप्तदश प्रोक्ताः, प्रकारा जिनपूजने॥४॥ तेऽन्योऽन्यं कथयामासुः, श्रुत्वेति वैचनं मुनेःएतेषु ने मेकैकं , विधास्याम देणापिण्य एम कुमारोए पूछयु एटले ते श्रेष्ट मुनिये प्रगट कह्यु के-॥४१॥ 1 स्नात्र, 2 विलेपन, 3 वस्त्र बे चडाववा ते. मज 4 वासखेप, 5 पुष्प, 6 माला, 7 वर्ण तथा 8 चूर्ण चडावर्बु.॥४२॥ ए महाध्वज अने 10 आभूषण चडाववां. वली 11 पुष्प, घर करवू अने 12 प्रभुनी आगल पुष्पनो ढगलो करवो. तेमज आगल 13 आठ मं गलीक करवां. // 43 // 14 धूप उवेखवो. 15 मनोहर गीत, 16 नृत्य, 17 वाजींत्र. जिनपूजनयां आ सत्तर प्रकार क ह्या छे." // 4 // मुनिना पवां वचन सांभली ते कुमारोए परस्पर का के, "आपणे ए पूजाओ Jun Gun Aaradhak Trust ॥श्णा
SR No.036439
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Hathishang
PublisherMaganlal Hathishang
Publication Year1902
Total Pages242
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size300 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy