________________ // 73 // P.PA. Gunratnasuti MS गुण सर्वस्वं तस्य हत्वासौ, राजा दंडं करिष्यति ॥इत्येवं जायमानोऽयं, श्रूयते पटहध्वनिः॥१५॥ लक्ष्मीचंद इति श्रुत्वा, दध्यौ पुष्पगृहं विना॥ निज्ञ नैति मम क्वापि, कथं कार्य दिनत्रयम् // तेनुं सर्व धन लइने आ राजा दंड करशे. आ प्रमाणे थयेलो ते पटहनो शब्द संभलाय छे." // 215 // ते पुरुषना आवां वचन सांभली लक्ष्मीचंद्र विचार करवा लाग्यो. "पुष्पना घर विना मने क्यारे पण निद्रा आवती नथी, तो म्हारे त्रण दिवस शुं करवू ?" || 216 // अतीते यामिनीयामे, सचिंताचांतचेतसा // तले सुष्वाप न प्राप, प्रमीलालेशमप्यसौ॥२१६॥ चिंतया परितः पश्यन् , पाणिभ्यां पुष्पमंदिरम् // जातमेतत्स्वयं दृष्ट्वा हृष्टो निशमथाप सः॥ __ पछी एक महर रात्री गइ, पण ते चिंतातुर चितथी शय्यामां सूतो परंतु निद्रानो लेश पण प्राप्त थयो नही. // 217 // पछी चिंताथी चोर तरफ पुष्पमंदिरने बने हाथथी स्पर्श करतो छतो पोतानी मेळे प्रगट थयेला ए पुष्पमंदिरने जोइने हर्षे पामेलो लक्ष्मीचंद्र निद्रा पाम्यो.॥२१०॥ ततःप्रातः प्रबुझेऽस्मिन् , सुहृदोऽस्य समागताः॥ तहीदय पुष्पप्रासाद, वीक्ष्यांचक्रुः परस्परम् // तथा दिने द्वितीयेऽपि, जाते पुष्पगृहे क्रमात्॥ तलारदैरपि ज्ञात्वा, विज्ञप्तमिति नूनुजे॥२॥ ____पछी सवारे ते लक्ष्मीचंद्र जागी उठयो एटलामां तेना मित्रो आव्या, ते ते पुष्पना मंदिरने जाइ परस्पर एक बीजा सामुं जोवा लाग्या. // 219 // तेवी रीते वीजे दिवसे पण पुष्पमंदिर थयुं एटले अनुक्रमे ते वात तलार * लोकोए जाणी, तेथी तेमणे राजाने आ प्रमाणे कर्तुं. // 220 // लक्ष्मीचशे विना पुष्पगृहं न स्वपति प्रनो // श्रुत्वेति कुपितो नूपस्तत्दणं तैस्तमानयत् // त्वयाझा खंमिता कस्मादिति प्रोक्तो महीनुजा // स प्रोवाच न राजाज्ञां, खमयामि कदाचन // " हे प्रभु ! लक्ष्मीचंद्र पुष्पना घर विना सूतो नथी." एवां तलार लोकनां वचन सांभली कोप पामेला राजाए तुरत ते तलार लोको पासे तेने तेडाव्यो. // 221 // "तें म्हारी आज्ञा केम लोपी?" एम राजाए कडं एटले लक्ष्मीचंद्रे कह्यु के, " हुं क्यारे पण राजानी आझा खंडन करतो नथी." || 222 // . . EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust