________________ P.P.A. Gunratnasuti MS MKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX स्वरूप पुष्पगहस्य, प्राक्त सात महापातः // उच ताह त्वयागत्य, निद्रा कार्या ममालये 223 तत्रापि तस्य सुप्तस्य, जाते पुष्पगृहे तथा // नृपतिर्विस्मितश्चिते, कमयामास तं प्रगे // 22 // पछी तेणे पुष्पना घरनी वात कही एटले राजाए कह्यु के, " त्यारे हारे म्हारा घरे आवीने मुइ रहे." 223 त्यां पण सूतेला तेने तेवीज रीते पुष्पहैं घर थये छते चित्तमां विस्मय पामेला राजाए तेने खमायो.२३४ तेनापि सहितो नूपस्ततोऽगानागमंदिरम् // पात्रावतीर्णा भूपं च, बन्नाषे नागदेवता // 22 // असौ पुण्यप्रन्नावाढयः पुण्यात्तुष्यंति देवताः // अस्माकं कथमर्चा स्यादश्य पुष्पगृहं विना // पछी लक्ष्मीचंद्र सहित राजा नागपंदिरे गयो. वली त्यां पण पात्रथी नीचे उतरेना नागदेवताए राजाने कह्यु. // 225 // " आ पुण्यना प्रभाववालो छ. देवताओ पुण्यथी प्रसन्न थाय छे. तो एने पुष्पना घर विना अमारी पूजा शी रीते थाय ?" // 226 // अथ हृष्टो महोनाथस्तन साकं गृहं ययौ // सामान्यः स्थापितो मंत्री, कृत्याकृत्यविदा मुना // देवस्य प्रतिकुलत्वाकांतः शूलरूजा नृपः // अंत्यावस्थां गतो लक्ष्मीचं प्रोवाच साश्रुहक् // पछी हर्ष पामेलो राजा तेनी साथे घेर गयो. त्यां कार्य अकार्यना जाण एवा तेणे लक्ष्मीचंद्रने सामान्य मंत्रीपदे स्थाप्यो. // 227 // कोइ वखते दैवना प्रतिकुलपणाथी राजाने शूलनो रोग थयो, तेथी अंत्य अवस्थामां आवी पडेलो ते रोतो छतो लक्ष्मीचंद्रने कहेवा लाग्यो. // 228 // मित्रत्वं तव देवेन, दूरितं दृश्यतेऽधुना // धुनाति जीवितं वृदं, मृत्युमत्तगजेंवत् // 22 // स प्रोचे परमं मित्रं, जिनधर्मो धरापते // पतेन जोवो यं यानपात्रं लब्ध्वा नवांवुधौ // 230 // ___“वणां दैवे त्हारुं मित्रपणुं दूर करेलु देखाय छे. कारण जेम वृक्षने पदोन्मत्त हाथी कंपावे तेम मृत्यु महारा जीवितने कंपावे छे. // 229 / / लक्ष्मीचंद्रे कह्यु. " हे पृथ्वीनाथ ! जिनधर्म उत्तम पित्र छे. कारण के जीव जे जिनधर्मरुप वहाणने पामीने संसाररुप समुद्रमा पडतो नयी." // 230 // कयुं छे केः Jun Gun Aaradhak Trust