________________ र PER A Gunratnasuti MS a जननी जनको नाता, पुत्रो मित्रं कलत्रमितरो वा॥ , दूरीनवंति निधने, शरणं जीवस्य जिनधर्मः // 231 // ___ मृत्यु प्राप्त थये छते माता, बाप, भाइ, पुत्र, मित्र, स्त्री अथवा वीजो कोइ जे होय ते सर्वे दुर थाय छे. अने जीवने एक जिनधर्मज शरण छे. // 231 // श्रवधाने नृपे जैनधर्म शर्मप्रदं नृणाम् // स प्रोचे शमपीयूषरससागरसन्निन्नम् // 232 // पछी राजा श्रद्धावंत थये छते लक्ष्मीचंद्रे माणसोने सुख आपनागे अने शांतिरुप अमृतरसना समुद्र समान जिनधर्म करो. // 232 // चतुःशरणसर्वात्मदामणादिकमप्यसौ // नृपतिं कारयामास, सोऽपि तत्प्रत्यपद्यत // 233 // नूपो मंत्रिणमाकार्य, बन्नाष गुणरंजितं // अस्यैव मम दातव्यं, प्राज्यं राज्यमिदं त्वया॥२३॥ पछी लक्ष्मीचंद्र राजा पासे चार शरण अने सर्व जीवोनी क्षामणादिक कराव्यु. राजाए पण ते सर्व करयुं. // 233 // गुणोवडे प्रसन्न थयेला राजाए मंत्रीने वोलावीने कयुं के, " त्हारे आम्हारूं समृद्धिवंत म्होटुं राज्य आ लक्ष्मीचंद्रनेज आप." // 234 // / तेन प्रपन्ने नूपालः, समाहितमना नृशम् // नमस्कारं स्मरन्मृत्वा, ब्रह्मलोके सूरोऽन्नवत् // नूपकृत्ये कृते तत्र, लक्ष्मीचंशेऽनवन्नृपः॥ पुर्याः पुष्पकरंमिन्याः स कुटुंबमथानयत् // 236 // मंत्रीये ते कबुल करयुं एटले अत्यंत शांत मनवालो राना नमस्कारने स्मरण करतो छतो मृत्यु पामीने / ब्रह्म लोकने विषे देवता थयो. // 235 // राजानुं अंत्यकार्य करया पछी त्यां लक्ष्मीचंद्र राजा थयो. पछी * तेणे पुष्पकरंडिनी नगरीयी पोताना कुटुंबने तेडाव्यु. // 236 // आकारणे समेतेऽस्य, गंतुकामः सुतांतिकम् // स लक्ष्मीसागरः पुष्पकेतुं नूपं व्यजिज्ञपत् // स्वामिनागपुरे खामी, मदीयस्तनुजोऽनवत् // गचाम्यहं तवाज्ञातः, सकुटुंबस्तदंतिके // 23 // nel Jun Gun Aaradhak Trust