________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. रंतु त्यां जयंतीये नारदने जोया नहि. // 24 // त्यां क्षणमात्र उभा रहीने क्रोधथी भरपूर एवा नारद पाछा वलीने विचार करवा लाग्या के, “ए जयंतीये म्हारो सत्कार करयो नहि तो हवे तेने हुं शुं हुं करुं?"॥२४॥ ए प्रमाणे विचार करता नारद जयंती उपर वहु क्रोध धारण करीने जता छता जिनदत्त शेठना महेल आगळ थइने चाल्या.॥४६॥ ते जिनदत्तनो लावण्यवाली अने गोखमां बेठेली धनश्री नामनी कन्याने जोइ नारद विचार करवा लाग्या के, “निश्चे आ कन्याथी ए जयंतीना अभिमाननो नाश थशे. // 247 // आ प्रमाणे देणंस्थित्वाषापूर्णो,व्यावृत्तोऽसौव्यचिंतयताअनयानोपलेदयेऽहं,"किंकिमस्या कैरोमितत॥ इति ध्यायनसौ गचन्नतुवं मत्सरं वहन् // श्रेष्टिनो जिनदत्तस्य, प्रौचाली मंदिरोपरिश्व६॥ * सलावण्यां गवादस्थां,तेस्य कन्यां धनैश्रियम्॥ईष्टा सदध्यौ तस्याःस्यान्मोनच्छेदोऽनया ध्रुवम् / ध्यात्वेति नारदस्तस्यापं चित्रपटेऽलीखत् ॥नृपीय दर्शयचायाश्चर्यमिह देश्यताम्॥५॥ नृपोऽवोचंदियं लक्ष्मीहोर्वास्ति चतुर्जुजा // नौरती किम हंसा सा,वीणापुस्तकधारिणी // तैवैवं नगरे किंतु, जिनदत्तो महाधनी // घनश्री तिनाम्नांस्य, सुंता रूपश्रियायुता // 25 // रत्नं रत्नेन घटतामितिध्यात्वा मया तवादर्शितास्ति यथायोग्यं, कार्य कार्यमंतःपरम्॥५१॥ इति प्रोच्य गते तस्मिन् , रोजाहूयं स्वमंत्रिणम्॥स्वरूपं झापयित्वोचे, श्रेष्टिमीकार्यतामिहें। विचार करी नारदे चित्रपटमां ते धनश्रीन रूप आलेखीने राजाने देखाडयुं अने कह्यु के, "आ आश्चर्य जो. // 248 // राजाए कह्यु. अरे! आ चतुर्भुजा लक्ष्मी छे के हंसना वाहनवाली अने वीणा पुस्तकने धारण करनारी सरस्वती पोते छे. // 249 // आ कोइ देवी नथी; परंतु त्हारा नगरने विषे जिनदत्त नामनो महा धनवंत शेठे रहेछे तेनी आ पोतिना नामथी धनश्री नामनी रूप संपत्तिवाली पुत्री छे. // 250 // "रत्न रत्ननी साथे जोडाओ." एम विचार करता एवा में तने ए देखाडी छे, माटे हवे जेम योग्य कार्य होय तेम करो." // 251 // एम कहीने नारद गया पछी राजाए मंत्रीने वोलावीने सर्व वात कही अने कह्यु के, “जिनदत्त शेठने बोलाव." un Gun Asracha Trust