________________ PPA Gunarasut MS गुण मुंचतो गृह्णतो वापि, नान्नवत्काचिदौचितो॥ वीक्ष्य ततो हृदः पूर्णोऽप्रदत्ता चैव कन्यका // विप्रःप्रोचे विलंबोऽत्र, राजन्मे जायते वृथा // कार्यं कृतेन कार्येण, यदि तत्कारय फुतम् // ___आपता अथवा न आपता कोइ योग्य यतुं नहोतुं, तेथी ते ब्राह्मणने जोइ पूर्ण हृदयवाला राजाए तेने कन्या आपी नहि. // 263 // ब्राह्मणे कयुं. "हे राजन् ! अहिं मने वृथा विलंब थाय छे. जो कार्य कराव वानी जरुर होय तो झट करावो. // 264 // ... * कुरूपत्वं ममालोक्य, बुझ्या किं खिद्यसे मुधा // कुरूपो वा सुरूपो वा, कार्यकर्ता विलोक्यते राजादनादपि प्रायो, रिंगणं रूपतोऽधिकम् // किं क्रियेत पुनस्तेन, येन कार्यं न सिक्ष्यति // म्हारुं कुरूप जोइने बुद्धिथी वृथा खेद शा माटे करो छो ? कुरूप होय वा सुरुप होय; परंतु कार्यनो करनारज जोवाय छे. // 265 // राजादनयको पण घj करीने रिंगणुं रूपथी अधिक होय छे, परंतु तेणे करोने शुं के, जेनाथी कार्यसिद्ध थाय नहि. // 266 // कयुं छे के:कोकिलानां स्वरो रूपं, नारीरूपं पतिव्रता // विद्यारूपं कुरूपाणां, हमारूपं तपस्विनाम् // ___कोकीलाने स्वर ए रुप छे, पतिव्रता ए नारीनुं स्वरुप छे, कुरूपिओनुं विद्या ए रूप छे अने तपस्वीयोनुं क्षमा ए रूप छे. // 267 // नूपतिमैत्रिणं प्रोचे, तलिंबक्रिया कुतः // अनेन कार्यतां कार्य, जीवतात् सा यथातथा // राजाए प्रधानने कडं के, " ते कार्यनो विलंब शा माटे करे छ? आ माणसनी पासे कार्य कराव्य के, जेयी जेमतेम करीने ते जीवती रहे. // 268 // | मंत्री प्राह प्रनो तथ्यं, परमस्ति विचारणा // कृते कार्य प्रदातव्यमस्मै सर्वं निवेदितम् 269 राज्याईदाने विप्राय, विलंबो ननवेत्तव // कन्या कुतस्तु दातव्या, तस्या यदर्तते न सा // मंत्रोये कयु. " महाराज ! ए सत्य छे, परंतु एक विचार थयो छे के, आ माणस कार्य करशे तो आपणे Jun Gun Aaradhat Trust // 9 //