________________ P.P.A. Gunratnasuti MS मनना विनोदने अर्थे मित्रो सहित उद्यानमां गयो. // 195 // जेम गजराज नर्मदा नदीना कांगगनुं स्मरण करे तेम त्यां तलावने विषे अने वाव्यने विष कमलना तंतओने जोतो छतो रत्नध्वज पेला वस्वनंज ध्यान करवा ला ग्यो.॥ 196 // ए रत्नध्वज केलना वनने विषे क्रीडा करतो छतो तेना तंतुओनी पंक्तिने जोइने जाणे पोताना इष्टदेवतुं स्मरण करतो होयनी ? एम ते दिव्य वस्त्रने संभारतो हतो. // 197 // ते रत्नध्वज शतपत्रोनां पुष्पोने विषे उज्वल एवी तंतुओनी पंक्ति जोइने जेम मंत्रनो जाण पुरुष मंत्र, स्मरण करे तेम दीर्घकाल पर्यंत वस्त्रनुं सरस्यां दीर्घिकायां चं, पद्मतंतून विलोकयन् ॥ऽकूलमेवें संस्मार,रेवाकुलमिवं द्विपः॥१६॥ नासु कोमितं कुर्वनसौ ततंतुसंततिम् ॥विलोक्य वस्त्रं संस्मार, तदिव्यं देवतामिव॥१॥ पुष्पेषु शतपत्रीणां, केशरश्रेणि मुज्वलाम्॥ वीक्ष्यं वस्त्रस्य सोऽस्मान्मंत्रझोमंत्रर्वञ्चिरम् // * एवं तत्रैवं संध्यायाः समयः समजायत // रंजीगृहं समाश्रित्य विशश्राम नरेंड्नू // 1 // सुप्तेसु सर्व मित्रेषु, शर्वाँ वर्यवाससा // कृतावासेन तैच्चित्ते, निज्ञ रं निवारिता // 30 // अईरागते सोऽथ सुंश्राव श्रवणोत्सवम् // गीतेन मिश्रितं वाद्यहृद्यं नाट्यध्वनि क्वचित् // नत्थाय तस्य वीदयार्थ, ततो गचन्नतुबधीः // पुरो विलोकयामास, देवतान्नवनं वने॥२०॥ तस्मिन् गते मनुष्यत्वानदणं प्रेदणं स्र्थितम् // असौ विचारयामास, नाट्यं दैवतमेतत् // ध्यान करवा लाग्यो. // 198 // ए प्रमाणे क्रीडा करता त्यांज संध्यासमय थयो, तेथी राजपुत्रे केलना मंडपनो आश्रय करीने विश्रांती करी.॥ 119 ॥रात्रीने विषे सर्व मित्रो मूह गया, पण ते रत्नध्वजना चित्तने विषे निवास करी रहेला श्रेष्ट वस्त्रे ते राजकुमारनी निद्रा दर करी. // 200 // पछी ते राजकमारे अझै रात्री गये बते कोई ठेकाणे कानने उत्सवरूप, गीत सहित अने बाजींत्रोथी मनोहर एवा नाचना शब्दने सांभल्यो.॥२०१|| पछी उत्तम वुद्धिवाला ते कुमारे उठीने ते नाचने जोवा माटे जता छता आगल वनने विषे देवमंदिरजोयु.॥२०२॥ राजकुमार मंदिरमा गयो एटले ते पोते माणस जाति होगी तुरत नाट्य बंध थयु, तेथी ते राजकुमार विचार Jun Gun Aaradhak Trust