________________ चरित्र, PP.AC.Gunratnasuri M.S. गुण ते महेलने विषे रत्नध्वजना उपर पडयु. // 187 // पछी जागी उठेला रत्नध्वजे चंद्रकिरणोथी पडेलं होयनी? एवं अने चंद्रकिरणोनी साथे हरिफाइ करवा योग्य तेमज दिदीप्यमान एवा ते अद्भुत दिव्यवस्वने दीखें. // 188 पछी रत्नध्वज ते वस्त्रने संताडीने पोतानी शय्यामां सूइ गयो अने सवारे जागी उठीने ते वस्त्रने लइ वारंवार जोवा लाग्यो. // 189 // ते वखते ते तेवू वस्त्र खभे नाखीने, परंतु तेवा पहेरवाना वस्त्र विना खेद पामेलो ते राजपुत्र रत्नध्वज पोताना मनमा विचार करवा लाग्यो के. // 17 // मारे पहेरवाना वस्त्र विना तेवा पासे सोऽथ जागरितोऽडाँकी नैति'व्यं वैस्त्रमद्भुतम् ॥चंशंशुन्निरिव च्यूतं,लक्ष्यं चंशशुन्निःस्फुरत्॥ संगोप्य तेहुकूलं से स्वीयं तत्पमशिश्रियत् // प्रातः बुइस्तवावा, पश्यतिस्म पुनःपुनः॥ * कृत्वोत्तरोये तत्ताहक्, परिधानं विना तदा॥विर्षणश्चिंतयामास, निजचेतसि राजसृः॥१॥ अंतरीयं विना ताहगुत्तरीयेण किं मम पंचदोझिततल्यस्योपरि चंशेर्दयेन किम् // 11 // ईतीयीकं विना योग्यमेकेन चिरेणे किम् ॥'वरं मुखं वेदेककुंझलार्दप्यकुंडलम्॥१७॥ एवं चिंतातुरं चित्तं, द॑धानं राजनंदनम् // विलोक्य सुहृदः प्रोचुवैलेक्ष्यं "किमिदं तव // एतेन्यः किमयुक्तेन, प्रोक्तेन वेचसाधुना॥साधुना वैचनेनेति', तेन तेने मनैःसुखम् // 1 // ततो मनोविनोदाय, वने क्रीडाकुतूहलैः॥मि त्रैः संह जंगामांसी,वासौकसि विषसधीः॥१९॥ राखवाना वस्त्रथी शुं ? कारण ओछाड विनानी सय्याना उपर चंद्रवान प्रयोजन शुं होय ? अर्थात् ओछाड विनानी शय्या उपर चंद्रवो बांधवा जेवू थायछे. // 191 // योग्य एवा बीजा वस्त्र विना मनोहर एवा एक वस्त्रथी शुं ? एक कुंडल पहेरवा करतां कुंडल विनानुं रहेवू ते वधारे सारं छे.॥ 192 // आ प्रमाणे चिंतातुर चित्तवाला राजपुत्रने जोइ मित्रोए कह्यु के, " तमे आq विलक्षणपणुं केम पाम्या छो? // 193 // हवणां आ मित्रोए कहेला अयोग्य वचनी शुं आम थयोछे ?" जो एम होय तो तेनार्थीज कहेवरावेलां सारां वचनथी त्हारा मनने सुख उपजाव्यु.॥ 19 // // निवास स्थानने विषे खेदयुक्त बुद्धिवालो ते रत्नध्वज पछी क्रीडा कुतुहलथी Jun Gun Aaradhak Trust HERE