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________________ P.P.AC.Gunratnasun M.S. प्रियाध्ययुतो रत्नसिंहोऽपि प्रीतमानसः // गत्वा नत्वा च सूरीशनीषोऽर्मदेशनाम् 535 नो नो अनादिमिथ्यात्व परिहारेण नावतः॥ जैनधर्मो विधातव्यः, शिवधर्मनिबंधनम् // - प्रसन्न मनवाला रत्नसिंहे पण बन्ने स्त्रीयो सहित त्यां जइ सूरीश्वरने नमस्कार करी धर्मदेशना सांभली५३९ हे लोको ! तयारे भवथी अनादि एवा मिथ्यात्वने त्यजो दइ मोक्षनु कारण एवो जैनधर्म आदरवो // 540 // शैवं मोमांसकं सांख्य, बौधं नैयायिकं तथा // एतानि दर्शनान्याहुर्घम मर्मविवर्जितम् 541 स्याहादरूपं मर्म स्यादथवा प्राणिनां दया // तेन मुक्तोऽखिलो धर्मो, जीवेनांगमिवाफलम। ___ शैव, मोमांसक, सांख्य, बौध, नैयायिक ए पांच दर्शनो मर्म विनाना धर्मने कहे छे. // 541 // ते म स्याद्वादरूप होय छे अथवा प्राणो नपर दया करवारूप होय छे. जेम जोव विनानुं शरीर निष्फल तेम मर्म विनानो धर्म पण निष्फल छे. // 542 // वने वासः प्रकुर्वाणाः शैवास्तावत्तपस्विनः // दीनुन्मुलयंत्येव, त्वचं गुह्याति शाखिनाम् // शोमाकिनींगुदीतैले, संचिन्वंत्यन्वहं च ये // दहंति समिधस्तेषां, धर्ममर्मझता कुतः // 54 // - प्रथम वनमां निवास करता शैव तापसो दर्डाने नखेडी नाखे छे अने वृक्षोनी छालने गृहण करे छ. 643 शोमाकिनी अने इंगुदिना तैलने निरंतर शोधता एवा जे शैवो लाकडांओने वाली नाखे छे, तो पछी योग धर्मना मर्मन जाणपणुं क्याथी होय ? " // 544 // शास्त्राएयधित्य ये विप्राद्या अपि प्राणिहिंसनम् // कुवैति सर्वदा तेषां धर्ममर्मझता कता - जे ब्राह्मणादिक शास्त्रोनो ' अभ्यास करीने पण निरंतर जीवहिंसा करे छे, तेओने धर्मना मर्मनं जाणपण क्यांथी होय? अर्थात् नन होय. // 545 // एवंश्रुत्वा गुरोर्वाक्यं, रत्नश्री जातिमस्मरत्॥ मिथ्यात्वं स्खं च निंदती, सा सम्यक्त्वमपाद व्यंतरेशेऽपि तत् ज्ञात्वा, गत्वानत्य प्रमोदतः॥ नाटयं विधाय सम्यक्त्व मुपादत्त मुनीश्वरात Jun Gun Awadhak Trust
SR No.036439
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Hathishang
PublisherMaganlal Hathishang
Publication Year1902
Total Pages242
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size300 MB
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